बच्चों का मन बड़ा ही कोमल होता है ठीक वैसे ही जैसे कच्ची मिट्टी यानि कि जिस भी आकार में ढ़ालना हो वे ढ़ल जाते हैं। आसपास होने वाली घटने वाली बातों का उनके मन पर गहरा असर होता है। वे जो देखते हैं उसी को अपने जीवन में एक सबक की तरह याद कर लेते हैं। इसीलिए बच्चों के सामने जो भी बात की जाएं वे सोच-समझकर और उनको धायान में रखकर ही हों।
नकारात्मक बातों से बचाएं-
बड़ों के बीच हुए मनमुटाव की बात बच्चों से कभी न करें। ऐसी बातें उनके मन में रिश्तों और रिश्तेदारी की एक नकारात्मक छवि बनाती हैं, इसलिए रिश्तेदारी में आपसी साथ समझ और सहयोग से जुड़े अनुभव ही बच्चों से साझा करें।
नई पीढ़ी को रिश्तों के ऐसे खूबसूरत पहलुओं से परिचित करवाएं। जो सुख-दुख में आपका संबल बने हों। इतना ही नहीं बच्चों के सामने रिश्तेदारों के फाइनेंशियल स्टेटस की बात भी नहीं करनी चाहिए। इन संबंधों में किसी भी तरह की ऊंच-नीच की बातें बच्चों को भी उनमें कमियां ही देखना सिखाती हैं, जो दूरियां बढ़ाने का करती है।
सोशल इवेंट्स का हिस्सा बनाएं-
आमतौर पर देखने में आता है कि बच्चे सोशल इवेंटस में नहीं जाते इसलिए रिश्तों से परिचित भी नहीं हो पाते। अक्सर घर के बड़े तो सामाजिक समारोहों में जाते हैं पर बच्चे नहीं। पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को भी ऐसे इवेंट्स का हिस्सा बनाएं। रिश्तेदारों से मिलवाएं।
इससे बच्चे अपने सामाजिक पारिवारिक परिवेश और अपनों से जुड़ पाएंगे। खास अवसर पर किसी रिश्तेदार के यहां होने वाले सोशल इवेंट्स के जरिए बच्चे अपनी पारिवारिक परंपराओं को भी जान पाएंगे।
अपने रीति-रिवाजों को समझना-
जानने से भी रिश्तेदारी का जुड़ाव बढ़ाता है। साथ ही उनके व्यवहार और संस्कार को भी सकारात्मक दिशा देता है। आज के समय में बच्चों के मन में आ रही असामाजिक सोच बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। यही वजह है कि बाल मनोवैज्ञानिक भी अब अभिभावकों को बच्चों को सोशल बनाने के लिए ऐसे पारिवारिक इवेंट्स में ले जाने की गाइडलाइंस दे रहे हैं।
रिश्ते सिर्फ पीड़ियों को जोड़ने वाली झेर ही नहीं, अपनों के साथ खुशनुमा माहौल में जीने का जरिया भी हैं। लेकिन मौजूदा समय में एकल परिवारों के बढ़ते चलन में बच्चे, रिश्तों से परिचित ही नहीं है।
बात सिर्फ दूर के नाते-रिश्तेदारों की ही नहीं, आज की पीढ़ी करीबी रिश्तेदारों को भी नहीं जानती पहचानती। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को अपने रिश्तेदारों से मिलवाएं, रिश्तों के मायने समझाएं आपस में जोड़ने वाली संबंधों की इस डोर की अहमियत बताएं।
रिश्तों की यह डोर मजबूत बनी रहे, इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि परिवार के हर सदस्य बच्चों के साथ भी रिश्तों की निबाह ऐसे करें कि बच्चे घर में ही इस पाठ को बेहतर पढ़ पाए।
रिश्तों का महत्व बताएं-
सबसे पहले तो बच्चों को रिश्तों का महत्व बताएं। यह समझाएं कि आपसी संबंधों के इस ताने-बाने की क्या अहमियत है? इस विषय में नियमित बातचीत करें कि क्यों जरूरी है रिश्ते?
बच्चों को यह बताना जरूरी है क्योंकि रिश्तों की अहमियत समझे बिना बच्चे संबंधों को समझना और सहेजना नहीं सीख सकते हैं। यह वाकई सच भी है कि रिश्तों के बिना जिंदगी अधूरी सी ही लगती है।
जीवन की पूर्णता पीढ़ियों के जुड़ाव को बनाए रखने में ही है। जब नई पीढ़ी रिश्तों का महत्व जानेगी तभी उनके मन में आपसी जुड़ाव की सोच और समझ पैदा होगी। यह समझ बच्चों में रिश्तों के प्रति अपनापन और साथ बने रहने का भाव लाती है।