भोपाल: वाकई मप्र गजब है, गजब है। एक लंबे अरसे बाद सूचना के अधिकार के तहत यह खुलासा हुआ है कि पेंच को छोड़कर अन्य नेशनल पार्क की नोटिफिकेशन ही नहीं हुआ है। सब कोरे कागज पर ही. मप्र में 11 नेशनल पार्क हैं पेंच, बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना, सतपुड़ा, संजय डुबरी टाइगर रिजर्व के लिए भी अधिसूचित हैं।
वन्य प्राणी क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर सभी नेशनल पार्कों की विधिवत नोटिफिकेशन करने करने का आग्रह किया है। अपने पत्र दुबे ने बताया है कि कुछ दिन पूर्व सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत ज्ञात हुआ है कि मध्यप्रदेश में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 35(4) के तहत केवल पेंच नेशनल पार्क ही अधिसूचित हुआ है और अन्य नेशनल पार्क की अधिसूचना लंबित है जो बेहद गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का प्रकरण है और वन्य प्राणी संरक्षण के लिए नुकसानदेह भी है।
इस अधिसूचना के अभाव में नेशनल पार्क की सीमा विवाद होते हैं,पार्क में अतिक्रमण ,अन्य अवैध गतिविधियों पर प्रभावी कानूनी कार्रवाई में अड़चन होती है।संवैधानिक संस्था ग्राम सभा के अधिकारों को दरकिनार किया जाता है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में अस्वीकार है। इन मामले में वन विभाग के अतिरिक्त जिला कलेक्टरों की लापरवाही भी उजागर हुई है।
30 वर्षों से अधिक समय से लंबित वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 35(4) के विषय पर माननीय सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के फैसले भी जारी हुए हैं लेकिन मध्यप्रदेश शासन के वन विभाग की असंवेदनशीलता से यह अधिसूचना 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित है और यह स्थानीय समुदाय विशेषकर वनांचल के आदिवासी समाज के हितों अधिकारों का हनन है। दुबे ने केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में लिखा है कि इस प्रकरण पर ध्यान दे और आवश्यक कानूनी कार्रवाई कर वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के उद्देश्यों को पर्याप्त सम्मान दे।
गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ (2014)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 35(4) के तहत अधिसूचना अनिवार्य है।
केरल राज्य बनाम ललिताकुमारी (2015)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा 35(4) के तहत अंतिम अधिसूचना जारी होने तक, क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।
मोहन राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2017)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वन विभाग धारा 35(4) के तहत अंतिम अधिसूचना जारी होने तक क्षेत्र में रहने वाले लोगों के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकता है।
यूपी राज्य बनाम शिव चरण सिंह (2015)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा 35(4) के तहत अंतिम अधिसूचना जारी होने तक, क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।