स्टोरी हाइलाइट्स
क्या मध्यप्रदेश का टाइगर स्टेट का दर्जा कायम रह पायेगा: देश में अगले साल बाघों का आकलन फिर से किया जाएगा. टाइगर सेंसस की तैयारी प्रारंभ हो चुकी है.....
क्या मध्यप्रदेश का टाइगर स्टेट का दर्जा कायम रह पायेगा?
-सरयूसुत मिश्रा
देश में अगले साल बाघों का आकलन फिर से किया जाएगा. टाइगर सेंसस की तैयारी प्रारंभ हो चुकी है. इसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं. सेंसस की प्रक्रिया और तौर-तरीकों के बारे में प्रशिक्षण की कार्यवाही भी शुरू हो गयी है. मध्यप्रदेश में 300 मास्टर ट्रेनर्स को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह मास्टर ट्रेनर वन मंडल स्तर तक कर्मचारियों को प्रशिक्षण देंगे. आकलन होने तक तीन बार प्रशिक्षण देने की तैयारी की गई है.
वन विभाग वर्ष 2018 की रणनीति पर ही काम कर रहा है. प्रशिक्षण में बारीकियां सिखाई जाएंगी, जो प्रत्येक बाघ को गिनती में शामिल करने में काम आएंगी. प्रशिक्षण का उद्देश्य यह है कि आकलन के समय कर्मचारी जंगल का बारीकी से मुआयना कर बाघों की उपस्थिति के संकेत ढूंढ सकें.
बाघों का आकलन करने में उनके पग मार्क, मल, पेड़ों पर खरोच और घास में बैठने के या लेटने के निशान देखकर उस क्षेत्र में उसकी उपस्थिति दर्ज की जाती है. इसके साथ ही कैमरे में बाघ के फोटो लिए जाते हैं, जिनका परीक्षण भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक कर अंतिम रिपोर्ट जारी करते हैं.
मध्य प्रदेश पिछली टाइगर सेंसेक्स में देश में पहले स्थान पर था. मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिया गया था. मध्य प्रदेश में 526 टाइगर पाए गए थे. दूसरे नंबर पर कर्नाटक रहा जहाँ 524 और तीसरे नंबर पर उत्तराखंड रहा जहाँ 446 टाइगर पाए गए थे. मध्यप्रदेश के लिए टाइगर स्टेट होना गौरव की बात है. मध्य प्रदेश पिछले कई वर्षों से यह गौरव हासिल करता चला आ रहा है.
बहरहाल, मध्यप्रदेश के लिए यह चिंता का विषय है कि पिछले 1 वर्ष में लगभग 21 टाइगर की मौत हुई है. कुछ टाइगर स्वाभाविक रूप से मरे हैं, तो कुछ शिकार हुए हैं. यदि पूर्व की गणना के हिसाब से देखा जाए तो 1 वर्षों में जितने टाइगर मरे हैं, उसके बाद मध्य प्रदेश के पास तकनीकी रूप से टाइगर स्टेट कहलाने का नैतिक अधिकार नहीं बचा है.
अगले साल जो टाइगर सेंसस हो रही है, उसमें मध्य प्रदेश क्या टाइगर स्टेट का दर्जा पाएगा? इस पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं. मध्य प्रदेश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बड़ी संख्या में अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान हैं. कान्हा और बांधवगढ़ जैसे बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में तो बाघों की संख्या को देखते हुए उनका क्षेत्र तुलनात्मक रूप से कम है.
इसके साथ ही नेशनल पार्क में मानव आबादी का दबाव भी बढ़ता जा रहा है. पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नेशनल पार्क के गाइड और जिप्सी मालिक हमेशा इस प्रयास में लगे रहते हैं कि पर्यटकों को सुनिश्चित रूप से वाघ दिखाया जा सके, ताकि उनकी कमाई हो. लोगों की वाघ देखने की यह प्रवृत्ति भी बाघों की स्वाभाविक दिनचर्या और विकास को प्रभावित करती है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि मध्य प्रदेश के टाइगर स्टेट दर्जे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह दर्जा मध्य प्रदेश के पास ही रहेगा. वन विभाग और सरकार के लिए यह चुनौती है कि वह वन्य प्राणी संरक्षण के प्रति गंभीरत और सजगता ताकत से बनाए रखे.