स्टोरी हाइलाइट्स
भीम के पुत्र घटोत्कच और पौत्र बर्बरिक के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों की सामान्य मानवों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई थी। माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था।
भीम के पुत्र घटोत्कच और पौत्र बर्बरिक के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों की सामान्य मानवों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई थी। माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था। जन्म लेते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) नहीं थे इसलिए उसका नाम घट-हाथी का मस्तक + उत्कच= केशहीन अर्थात घटोत्कच रखा गया। इसका मस्तक हाथी के मस्तक जैसा और केशशून्य होने के कारण यह घटोत्कच नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह अत्यंत मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया। उसमें जहां शारीरिक बल था वहीं वह मायावी भी था। चूंकि घटोत्कच की माता एक राक्षसी थी, पिता एक वीर क्षत्रिय था इसलिए इसमें मनुष्य और राक्षस दोनों के मिश्रित गुण विद्यमान थे। वह बड़ा क्रूर और निर्दयी था। घटोत्कच ने युद्ध में अपने विशाल शरीर से हाहाकार मचा रखा था। वे एक ही बार में अपनी पैरों के नीचे कई सैनिकों को कुचल कर मार देते थे जिससे घबराकर दुर्योधन ने कर्ण को अमोघ अस्त्र चलाने का आदेश दिया। इस अस्त्र से घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हुए।
दूसरी ओर बर्बरीक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से कृष्ण चिंतित हो गए थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।