बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी महामंडलेश्वर बन गई हैं, उन्होंने संगम तट पर पिंडदान किया, अब उनका नाम ममता नंद गिरि होगा। केवल उनका पट्टाभिषेक बाकी है। किन्नर अखाड़े ने उन्हें यह उपाधि दी थी।
वह शुक्रवार सुबह महाकुंभ स्थित किन्नर अखाड़े में पहुंचीं। उन्होंने किन्नर अखाड़े की प्रमुख महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया। दोनों के बीच करीब एक घंटे तक महामंडलेश्वर निर्माण पर चर्चा हुई।
शुक्रवार को ही महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ममता कुलकर्णी के साथ अखिल भारतीय अखाड़े के अध्यक्ष रवींद्र पुरी के पास गईं। ममता कुलकर्णी और रवींद्र पुरी के बीच लंबी बातचीत हुई। इस दौरान किन्नर अखाड़े के पदाधिकारी भी मौजूद रहे। फिर उन्हें महामंडलेश्वर बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
बैठक के दौरान ममता कुलकर्णी ने धर्म पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जब भगवान राम माता सीता की खोज में चित्रकूट के वन में गए तो वहां भगवान शिव और पार्वती के बीच संवाद हुआ। किन्नर अखाड़े ने ममता कुलकर्णी की महामंडलेश्वर पद पर नियुक्ति को लेकर पूरी गोपनीयता बरती है।
भगवा वस्त्र पहनकर महाकुंभ में प्रवेश करने वाली ममता कुलकर्णी साध्वी के रूप में महाकुंभ में आईं। वह भगवा रंग में रंगी नजर आईं। वह अपने गले में दो बड़ी रुद्राक्ष की मालाएं पहनी हुई थीं। उन्होंने कंधे पर एक भगवा थैला भी लटकाया हुआ था।
दर्शन के बाद ममता कुलकर्णी ने कहा कि 'मैं महाकुंभ के पावन क्षण की साक्षी हूं' महाकुंभ में आना और यहां की भव्यता को देखना उनके लिए बेहद यादगार क्षण है। ये मेरा सौभाग्य होगा कि मैं भी महाकुंभ के इस पवित्र क्षण का साक्षी बन रहा हूं। मुझे संतों से आशीर्वाद मिल रहा है। ममता कुलकर्णी जब किन्नर अखाड़े पहुंची तो उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। लोगों में उनके साथ सेल्फी और फोटो लेने की होड़ मच गई।
उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है - अब मैं एक साध्वी का जीवन जी रही हूं। वर्ष 2014 में ममता अपनी आत्मकथा 'ऑटोबायोग्राफी बाई योगिनी' लेकर दुनिया के सामने आईं। इस पुस्तक का विमोचन करते हुए उन्होंने अपने बारे में कई बातें बताईं। उन्होंने कहा कि वह कभी फिल्मों में नहीं आना चाहती थीं, लेकिन उनकी मां की इच्छा ने उन्हें इंडस्ट्री में आने के लिए मजबूर कर दिया, जो उनकी सबसे बड़ी गलती थी। उन्होंने यह भी बताया कि फिल्मों से दूर रहने के बाद उन्होंने आध्यात्म को अपनाया और अब वह एक साध्वी का जीवन जी रही हैं।