MP के नांदनेर में जन्मे महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का परलोक गमन, मोदी ने जताया शोक, बोले- उनका जाना एक अपूरणीय क्षति
मध्याप्रदेश के बुदनी के पास ग्राम नांदनेर में जन्मे महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का काशी के हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। वे देश में संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे| उन्हें राष्ट्रपति से लेकर यूपी सरकार से कई पुरुस्कार प्राप्त हुए थे। काशी के विद्वानों ने कहा कि उनके जाने से काशी के पांडित्य परंपरा की कड़ी टूट गई है।
प्रकांड विद्वान महामहोपाध्याय पंडित जी का बीती रात शुक्रवार को निधन हो गया। उन्होंने महामनापुरी स्थित अपने निज आवास पर अंतिम सांस ली। उनके परलोक गमन की सूचना से काशी के विद्वानों में शोक की लहर है। काशी के प्रकांड विद्वानों का कहना है कि पंडित द्विवेदी के निधन से पांडित्य परंपरा का एक कड़ी टूट गई। हरिश्चंद्र घाट पर शनिवार दोपहर को उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके छोटे पुत्र प्रो पं सदा शिव द्विवेदी ने मुखाग्नि दी।
पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी के निधन पर प्रधानमंत्री(PM) नरेंद्र मोदी ने भी शोक व्यक्त किया है।
PM ने ट्वीट किया 'संस्कृत की महान विभूति महामहोपाध्याय पं. रेवा प्रसाद द्विवेदी जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है। उन्होंने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रतिमान गढ़े। उनका जाना समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में उनके परिजनों और प्रशंसकों को मेरी संवेदनाएं। ओम शांति!।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि रेवा प्रसाद द्विवेदी साहित्य शास्त्र के मूर्धन्य विद्वान थे। द्विवेदी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व संकाय प्रमुख रहे।द्विवेदी जी साहित्य शास्त्र के साहित्य विभाग में विभागाध्यक्ष रहे। द्विवेदी जी नें अनेकों ग्रंथों की रचना की है। इसमें तीन महाकाव्य अलग और अद्भुत हैं। उन्होंने शताब्दी का सबसे बड़ा महाकाव्य स्वातंत्र्यसंभव जो 103 सर्ग का है लिखा । द्विवेदी जी ने दो नाटक और 20 महाकाव्य लिखे थे।
रेवा प्रसाद द्विवेदी ने लगभग 6 मौलिक साहित्य शास्त्र के ग्रंथों की रचना की। वह 1950 में मध्य प्रदेश के बुदनी के ग्राम नांदनेर से काशी आए थे। पंडित द्विवेदी का जन्म स्थान मध्य प्रदेश का नांदेर ही था। वे नांदनेर आते रहते थे| रेवा प्रसाद द्विवेदी का साहित्यशास्त्र की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी स्वामी करपात्री महाराज के अनन्य शिष्यों में से थे। 70 के दशक में काशी में श्री द्विवेदी ,महंत वीर भद्र मिश्र, विद्या निवास मिश्र, हरिहर नाथ त्रिपाठी, शिव दत्त शर्मा चतुर्वेदी, पं. गोपाल त्रिपाठी, कमलेश दत्त त्रिपाठी, गिरजा शंकर सिंह, बटुक शास्त्री जैसे लोग काशी के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, अकादमिक क्षेत्र में बडे नाम हुआ करते थे।
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प्रो. रेवा प्रसाद द्विवेदी के वर्तमान में दो पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम संस्कार में काशी के विद्वानों की उपस्थिति रही। इस मौके पर प्रो. भगवत शरण शुक्ल, प्रो विजय शंकर शुक्ल, प्रो रामनारायण द्विवेदी सहित अनेकों विद्वान रहें। रेवा प्रसाद द्विवेदी को सबसे युवा साहित्यकार का राष्ट्रपति पुरस्कार 1979 में मिला था। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से विश्व भारती सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। राष्ट्र की तमाम संस्थाओं ने अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया।
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पंडित रेवा द्विवेदी को आधुनिक महाकवि कालिदास की उपाधि से अलंकृत किया गया था। काशी विद्वत परिषद को उन्होंने बौद्धिक ऊंचाई दी। काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर राम यत्न शुक्ल ने बताया कि आज प्रो. रेवा प्रसाद द्विवेदी के जाने से संस्कृत का दैदीप्यमान नक्षत्र चला गया। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री श्री राम नारायण द्विवेदी ने कहा कि रेवा प्रसाद द्विवेदी ने जो कार्य किया है संस्कृत साहित्य के लिए वह आज के विद्वानों के लिए अभिनव धरोहर है। अभिनव संस्कृत साहित्य स्थापना के लिए उन्होंने योगदान किया है, अब वह कार्य अधूरा रह जाएगा। उनके जाने से अपूर्ण क्षति हुई है भगवान उनके परिवार को इस शोक संवेदना सहन करने की क्षमता दे। पूरे काशी में संस्कृत में एक शोक की लहर व्याप्त हो गई है।
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