भोपाल: भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा जारी रिपोर्ट आने के बाद प्रदेश के वरिष्ठ आईएफएस अफसर भले ही खुशफहमी पाल लिए हैं। लेकिन रिपोर्ट ने वन विभाग के अफसर की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 3418 वर्ग किलोमीटर राजस्व के जंगल कम हो गए हैं, वहीं हर साल लेंटाना ग्रास के उन्मूलन के नाम पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं।
बावजूद इसके 5914.49 वर्ग किलोमीटर के जंगल में लेंटाना घास फैल गया है। जबकि 2021 की रिपोर्ट के अनुसार जंगल में लेंटाना घास का एरिया 2852 किलोमीटर था। यानि वन आवरण क्षेत्र बढ़ाने में सबसे अधिक भूमिका लेंटाना, एजराटम और कैसियाटोरा जैसे आक्रमणकारी प्रजाति के पौधों की है।
भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान द्वारा शनिवार को जारी किए गए रिपोर्ट में 3418 वर्ग किलोमीटर राजस्व के जंगल कम हो गए हैं। वन विभाग के मैदानी अफसरों ने नाम की गोपनीयता के शर्त रखते हुए बताया कि अवैध उत्खनन, अतिक्रमण और सड़कों के थोड़ी कारण की वजह से राजस्व एरिया का जंगल घटा है। रिपोर्ट के अध्ययन से यह तत्व उजागर होता है कि छायादार वृक्षों का क्षेत्र तेजी से घट रहा है। खासकर ग्रामीण इलाके में वृक्षों की कटाई हो रही हो रही है।
वन विभाग के एक सीनियर अधिकारी की माने तो ग्राम पंचायत को पेड़ कटाई की अनुमति दिया जाने कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में छायादार नीम और आम जैसे फलदार वृक्षों की कमी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में आम की जगह अब आंवला और अमरूद के वृक्ष अधिक दिखाई देते हैं।
वन विभाग लेंटाना ग्रास जैसे आक्रमणकारी प्रजातियों के उन्मूलन के लिए हर साल लगभग 7 करोड़ रूपया खर्च किया जाता है। बावजूद इसके, 2021 की रिपोर्ट की तुलना में लेंटाना ग्रास का एरिया दोगुना बढ़ गया है। यानि 2021 में लेंटाना ग्रास का एरिया 2852 वर्ग किलोमीटर था जो कि बढ़कर 5914.49 वर्ग किलोमीटर हो गया है।
इसी प्रकार अतिक्रमण प्रजाति कैसियाटोरा का क्षेत्रफल 1324 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 4579.87 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। रिपोर्ट के अध्ययन से यह भी उद्घाटित हुआ कि वन्य जीव एवं पक्षियों का रहवास एरिया भी तेजी से कम हो रहा है। छोटे झाड़ के जंगल 5456.55 से घटकर 3124.20 रह गए हैं। अब लाख टके का सवाल यह है कि अपर मुख्य वन सचिव अशोक वर्णवाल अपने साप्ताहिक कार्यक्रम टाइम लिमिट बैठक में इन मुद्दों पर गंभीरता से फॉरेस्ट अफसरों से चर्चा करेंगे।
364.83 करोड़ रुपए की उपयोगिता पर कैग उठा चुका है सवाल..
कैग ने कुल 63 वन मंडलों में से केवल 17 वन मण्डलों में किए गए ऑडिट में 364.83 करोड़ रुपए की उपयोगिता पर सवाल खड़े किए हैं। गंभीर जनक पहलू यह है कि वनीकरण क्षतिपूर्ति के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद वर्ष 2017 और 2019 के बीच प्रदेश में वन घनत्व घटा और खुले वन आवरण क्षेत्र में 1.3% की वृद्धि हुई है।
क्षतिपूर्ति वनीकरण के नाम पर हुए पौधारोपण के लिए स्थल के चयन से लेकर वृक्षारोपण तक में गड़बड़ी की गई। रोपित किए गए पौधों की जीवितता का प्रतिशत 75% होना चाहिए था। जबकि कैग ने अपने रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि वनीकरण क्षतिपूर्ति के नाम पर हुए पौधारोपण की जीवतता का प्रतिशत 6 से 60 फीसदी से भी कम पाए गए हैं।