भोपाल: जंगल महकमा वन प्रबंधन के लिए 7 आईएफएस की वर्किंग प्लान में पदस्थापना की बांट जोह रहा है। इसके लिए पीसीसीएफ मुख्यालय कई मर्तबा अपर मुख्य सचिव वन को प्रस्ताव भेज चुका है परन्तु मंत्रालय में पोस्टिंग पर कोई गौर नहीं किया जा रहा है। इस बीच 2012 के बिजेंद्र श्रीवास्तव की वर्किंग प्लान छतरपुर में पोस्टिंग हो गई है लेकिन के वह पूर्व छिंदवाड़ा टेरिटोरियल का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं।
पीसीसीएफ वर्किंग प्लान शाखा की ओर से भोपाल, छिंदवाड़ा, जबलपुर, शहडोल, ग्वालियर और बैतूल की कार्य आयोजना बनाने के लिए अफसरों को पोस्टिंग के प्रस्ताव नवंबर 24 को ही भेजे हैं किन्तु शासन स्तर पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया। जबकि वन मंत्रालय ने पिछले दिनों वन मण्डलों में पोस्टिंग के आदेश जारी किये हैं। इन्हीं आदेश अकेले पूर्व छिंदवाड़ा वन मंडल में पदस्थ डीएफओ बृजेन्द्र श्रीवास्तव की छतरपुर वर्किंग प्लान बनाने के लिए पोस्टिंग की गई।
2012 बैच के बृजेंद्र श्रीवास्तव के अलावा ओएसडी वन मंत्रालय में पदस्थ क्षितिज कुमार, माधव नेशनल पार्क में पदस्थ है प्रियांशी सिंह राठौड़, नरसिंहपुर डीएफओ लवित भारती और महेंद्र प्रताप सिंह डीएफओ साउथ सागर की वर्किंग प्लान में पोस्टिंग किए जाने का नाम प्रस्तावित है। सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय में पदस्थ ओएसडी क्षितिज कुमार के दबाव में अभी तक आदेश जारी नहीं हो सके।
परंपरा थी कि हर अधिकारी वर्किंग प्लान बनाएं..
2005 तक हर अधिकारी को वर्किंग प्लान बनाने की परम्परा थी। लेकिन 2007 में कुछ अधिकारियों वन मंत्री पर ऐसा दबाव बनाया कि वर्षों से चली परंपरा टूट गई और वे वर्किंग प्लान बनाने से बच गए। इसके बाद तो परंपरा चल गई। मंत्रालय में बैठे शीर्ष अफसर और मंत्री मैनेजमेंट के चलते कहते अधिकारियों को वर्किंग प्लान बनाने से बचाने लगे।
यहां महत्वपूर्ण तथ्य है कि वन विभाग में विकास कार्यों / वनसुरक्षा एवं सम्बर्धन के लिए 10 वर्षीय कार्य आयोजना बनाने का प्रावधान है। जिसके लिए संभागीय स्तर पर भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों की कार्य आयोजना अधिकारी के पद पर वरिष्ठता क्रम से पदरिथति की जाती है।
3 वर्ष के लिए होती हैं पोस्टिंग..
इन कार्य आयोजना अधिकारियों को वन मुख्यालय से आवंटित वनमण्डलों की कार्य आयोजना अधिकतम 3 वर्ष में पूर्ण करना अनिवार्य होता है। कार्य आयोजना अनुमोदन के अभाव में केन्द्र शासन द्वारा उपर्युक्त लकड़ी कूप विदोहन की अनुमति नहीं दी जाती है, जिससे शासन को राजस्व की अपरिमित क्षति होती है।
इसी कारण पूर्व में कार्य आयोजना में पदस्थिति होने पर ज्वाइन न करने वाले अधिकारियों को दण्डित भी किया गया है, परन्तु शासन स्तर पर वरिष्ठ अधिकारियों ने करोड़ो रूपये का खेलकर समय-समय पर कार्य आयोजना में पदस्थिति करने की नई-नई पालिसी बनाकर अनेको अधिकारियों को उपकृत कर करोड़ो रूपये का लेन देन किया है।