रंग भरी एकादशी पर संतों ने खेली अपने आराध्य संग होली, शोभायात्रा निकालकर पंचकोसी परिक्रमा


Image Credit : X

स्टोरी हाइलाइट्स

Ayodhya: राम नगरी अयोध्या में होली का अलग ही नजारा यहां के मंदिरों में देखने को मिला, जिसमें 500 वर्षों के संघर्ष के बाद बनने वाले राम मंदिर की खुशी साफ झलक रही थी..!!

Ayodhya: सोमवार 10 मार्च को रंगभरी एकादशी मनाई जा रही है। राम नगरी अयोध्या में होली का अलग ही नजारा यहां के मंदिरों में देखने को मिला, जिसमें 500 वर्षों के संघर्ष के बाद बनने वाले राम मंदिर की खुशी साफ झलक रही थी, हर कोई जय श्री राम, हनुमान जी महाराज की जय के नारे लगाता रहा। अवधपुरी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से हुई।

रंगभरी एकादशी का यह उत्सव अयोध्या की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाता है। इस दिन संतों और भक्तों ने श्रीराम के प्रति अपनी अटूट आस्था और प्रेम को प्रकट किया। अयोध्या में यह उत्सव हर साल बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जो भगवान राम के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा को दर्शाता है।

रंगभरी एकादशी के दिन रामनगरी के साधु-संत अपने आराध्य प्रभु श्रीराम और उनके परम भक्त हनुमान लला के साथ होली के रंग में रंग गए। मंदिरों में साधु-संतों ने अपने देवी-देवताओं के साथ अबीर-गुलाल उड़ाकर और होली खेलकर रंगों के त्योहार की शुरुआत की।

रंगभरी एकादशी के अवसर पर परंपरागत रूप से सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी में सुबह नौ बजे हनुमानजी महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना व श्रृंगार के बाद अबीर-गुलाल लगाया गया। इसके बाद हनुमानजी के प्रतीक चिन्ह और छड़ी की पूजा की गई।

अवध में होली की शुरुआत में मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में गुलाल दिया जाता था और इससे रामनगरी की संस्कृति और मजबूत होती थी। रामनगरी अयोध्या में 6,000 से अधिक मंदिरों के गर्भगृह में विराजमान भगवान की प्रतिमा का श्रृंगार किया गया और ब्रह्म मुहूर्त में आरती कर पुष्प अर्पित किए गए।

रामनगरी के मंदिरों में होली महोत्सव की औपचारिक शुरुआत माघ शुक्ल पंचमी वसंत पंचमी से होती है और प्रतिदिन भगवान को अबीर-गुलाल भी अर्पित किया जाता है, लेकिन रंगभरी एकादशी का पर्व मुख्य रूप से फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन ही मनाया जाता है।

धार्मिक नगरी अयोध्या में यह प्राचीन परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसी परंपरा के तहत रंगभरी एकादशी के अवसर पर अयोध्या के प्रमुख सिद्धपीठों में से एक प्राचीन हनुमानगढ़ी के नागा परंपरा से जुड़े साधु-संतों ने हनुमानगढ़ी मंदिर में रखे गए हनुमान लला के प्रतीकात्मक ध्वज और प्रतीक चिह्न के साथ मंदिर परिसर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ होली खेली।

इसके बाद नागा साधुओं का एक समूह जुलूस की शक्ल में बैंड-बाजे के साथ अयोध्या की सड़कों पर निकला और अखाड़ों के पहलवानों के करतब दिखाए। होली के उल्लास में डूबे संतों ने हर आने-जाने वाले को अबीर गुलाल से रंग दिया।

रंगभरी एकादशी पर हनुमानगढ़ी परिसर में रंगों के बीच आस्था की लहर देखी गई तथा धार्मिक नगरी अयोध्या की सड़कें अबीर व गुलाल से रंगी नजर आईं तथा परंपरागत रूप से कड़ी सुरक्षा के बीच हनुमानगढ़ी का झंडा लेकर साधु-संतों का जुलूस अयोध्या की सड़कों पर निकला, ढोल-नगाड़ों की थाप पर साधु-संतों ने जमकर नृत्य किया। 

नागा साधुओं का यह जुलूस अयोध्या के मुख्य मार्गों से होते हुए रास्ते में पड़ने वाले हर मंदिर तक पहुंचा, जहां नागा साधुओं ने भगवान की मूर्ति के साथ होली खेली। इसी क्रम में संत अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा करने के बाद सरयू नदी के तट पर पहुंचे, जहां पूजा और स्नान के बाद भिक्षु मंदिरों की ओर बढ़े। नागा साधु-संत मठ-मंदिरों में जाकर वहां स्थापित मूर्तियों पर अबीर-गुलाल लगाकर लोगों को होली का निमंत्रण देते हैं। इसके पंचकोसी परिक्रमा के बाद जुलूस समाप्त हुआ।