विपक्षी एकजुटता: गठबंधन में क्षेत्रीय दल मजबूत, कांग्रेस मज़बूर


बेंगलुरु में विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए मंथन में सोनिया गांधी के पहुंचने को अहम माना जा रहा है। इसका सियासी अर्थ यही लगाया जा रहा है कि विपक्षी दल अपने नेता के रूप में राहुल गांधी की स्वीकार्यता पर एकमत नहीं हैं।

कांग्रेस के बिना विपक्षी गठबंधन नहीं हो सकता है। कांग्रेस पर ही विपक्षी गठबंधन का दारोमदार है। कांग्रेस कभी इस देश पर एकछत्र राज करने वाली पार्टी रही है। कांग्रेस को हराने के लिए भारत में गठबंधन की राजनीति शुरू हुई थी. आज वही कांग्रेस गठबंधन की राजनीति के सहारे बीजेपी को हराने का सपना पाल रही है।

गठबंधन का कागजी खाका बन गया है लेकिन यह जमीन पर कैसे उतरेगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस ही अकेली पार्टी है जिसका संगठन जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक है। और क्षेत्रीय दलों की राजनीति कांग्रेस की विफलता पर ही खड़ी है।  

सवाल यह है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने राज्यों में स्पेस देकर खुद को क्यों कमजोर करना चाहेंगे? और जिन राज्यों में कांगेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है वहां पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात में बीजेपी ने 2019 के चुनाव में लगभग क्लीन स्वीप किया था और अभी भी सियासी पंडित यही मान रहे हैं कि भाजपा की 2024 में वापसी में यही राज्य बड़ी भूमिका निभाएंगे।

ऐसे में कांग्रेस एक और जहा विपक्षी गठबंधन की बड़ी आस दिखाई देती है वहीं भाजपा के सामने उसका सीधा प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में विपक्षी उमीदों के लिए बड़ी फांस ही दिखाई देता है।