Padma Shri Ramsahay Pandey: पद्मश्री रामसहाय पांडे का निधन हो गया है। सामाजिक बाधाओं को तोड़ते हुए बुंदेलखंड के लोकप्रिय राई लोकनृत्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने में उनका योगदान अद्वितीय है। 2022 में 94 वर्ष की आयु में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वह बुंदेलखंड क्षेत्र के लोक कलाकार थे।
उन्होंने कई देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। बुंदेलखंडी लोकनृत्य एवं नाट्य कला परिषद के संस्थापक रामसहाय पांडे पिछले कुछ समय से लगातार बीमार चल रहे थे। उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी पांडे के निधन पर शोक व्यक्त किया है। एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए सीएम ने लिखा है, कि बुंदेलखंड के गौरव, लोकनृत्य राई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री श्री रामसहाय पांडे जी का निधन मध्यप्रदेश और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। लोक कला एवं संस्कृति को समर्पित आपका सम्पूर्ण जीवन हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत की पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दुःख सहन करने की शक्ति दें। ।।ॐ शांति।
आपको बता दें, कि जब वह बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। उनका बचपन अत्यंत गरीबी में बीता, फिर भी उन्होंने राई नृत्य सीखा और इसे देश-विदेश में लोकप्रिय बनाया। रामसहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के मडधार पाठा गांव में हुआ था। एक बार रामसहाय पाण्डेय एक मेले में पहुंचे। वहां उन्होंने राई नृत्य देखा। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह भी राई नृत्य करेंगे। बुंदेलखंड के सामाजिक दृष्टिकोण से राई नृत्य ब्राह्मण परिवारों के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन रामसहाय पाण्डेय अपनी जिद पर अड़े रहे।
ब्राह्मण होने के बावजूद उन्होंने अपने परिवार की परवाह न करते हुए अपना पूरा जीवन लोक कला और नृत्य को समर्पित कर दिया, जिसे समाज ने अस्वीकार कर दिया था। 1964 में, उन्हें ऑल इंडिया रेडियो भोपाल द्वारा रवीन्द्र भवन, भोपाल में 'रंगवार आसव में केहन रै' नृत्य के लिए आमंत्रित किया गया था। यहां पांडेय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह की मौजूदगी में राई की प्स्तुति दी ती।
1980 में वे मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित आदिवासी लोक कला परिषद के सदस्य चुने गए। 1980 में उन्हें रायगढ़ सरकार के पंचायत सेवा विभाग द्वारा नित्य शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1984 में वे जापानी सरकार के निमंत्रण पर एक महीने के लिए जापान गये। सन् 2000 में बुन्देलखण्डी लोकनृत्य एवं नाट्य कला परिषद नामक संगठन की स्थापना की गई। 2006 में, राई नृत्य दुबई में पेश किया गया था।
दरअसल राई नृत्य बुंदेलखंड क्षेत्र का एक प्रसिद्ध नृत्य है। राई नृत्य में बेड़नियां नृत्य करती हैं और पुरुष मृदंग बजाते हैं। इस नृत्य में पांगे गाए जाते हैं। मृदंग की थाप के साथ घुंघरुओं की झनकार और उसके साथ होने वाले नृत्य प्रदर्शन और स्वांग लोगों को भरपूर मनोरंजन प्रदान करते हैं।
छोटे कद के पांडे जब कमर में ढोल बांधकर नाचते और कलाबाजियां करते तो लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। राई नृत्य में उनका कोई मुकाबला नहीं था।