Paris Paralampic 2024: पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारतीय एथलीटों का धमाकेदार प्रदर्शन जारी है। अब सुमित अंतिल ने पुरुषों की भाला फेंक (F64 श्रेणी) में स्वर्ण पदक जीता। सुमित ने अपने दूसरे प्रयास में 70.59 मीटर भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता। सुमित अंतिल का थ्रो पैरालंपिक खेलों (F64 सीरीज) के इतिहास में सबसे अच्छा थ्रो था। वहीं, बैडमिंटन खिलाड़ी नित्या श्री सिवान ने महिला एकल एसएच6 में कांस्य पदक जीता। नित्या ने कांस्य पदक मुकाबले में इंडोनेशिया की रीना मार्लिना को 21-14, 21-6 से हराया।
इन दो पदकों के साथ मौजूदा पैरालंपिक खेलों में भारत के पदकों की संख्या 15 हो गई है। भारत ने अब तक तीन स्वर्ण, पांच रजत और सात कांस्य पदक जीते हैं। आपको बता दें कि सुमित अंतिल ने टोक्यो पैरालिंपिक में भी गोल्ड मेडल जीता था। ऐसा करते हुए, वह पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक बचाने वाले पहले भारतीय भाला फेंक खिलाड़ी बन गए।
फाइनल में सुमित अंतिल का प्रदर्शन:
पहला थ्रो- 69.11 मीटर
दूसरा थ्रो- 70.59 मीटर
तीसरा थ्रो- 66.66 मीटर
चौथा थ्रो-फ़ाउल
पांचवां थ्रो- 69.04 मीटर
छठा थ्रो - 66.57 मीटर
इस स्पर्धा में श्रीलंका के डुलान कोडिथुवाक्कू (67.03 मीटर) ने रजत और ऑस्ट्रेलिया की मिशेल ब्यूरियन (64.89 मीटर) ने कांस्य पदक जीता। भारत के संदीप चौधरी (62.80 मीटर) चौथे स्थान पर रहे। F64 इवेंट में, एथलीट कृत्रिम अंगों (पैरों) के साथ खड़े होकर प्रतिस्पर्धा करते हैं।
इस मैच में सुमित अंतिल ने अपना ही पैरालंपिक रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने पहले प्रयास में 69.11 मीटर थ्रो किया, जो एक नया पैरालंपिक रिकॉर्ड था। इसके बाद दूसरे प्रयास में 70.59 मीटर थ्रो कर उन्होंने एक बार फिर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। सुमित ने टोक्यो पैरालिंपिक में भी गोल्ड मेडल जीता था।
हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले सुमित अंतिल का जन्म 7 जून 1998 को हुआ था। जब सुमित सात साल के थे, तब वायुसेना में तैनात उनके पिता रामकुमार की बीमारी से मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद माँ निर्मला ने सारे दुःख सहे और चारों बच्चों का पालन-पोषण किया। 12वीं में पढ़ाई के दौरान सुमित के साथ एक भयानक हादसा हुआ। 5 जनवरी 2015 की शाम जब वह ट्यूशन पढ़ाकर अपनी बाइक पर लौट रहा था, तभी सीमेंट ब्लॉकों से लदी एक ट्रैक्टर-ट्रॉली ने सुमित को टक्कर मार दी और उसे काफी दूर तक घसीटते हुए ले गई।
इस दुर्घटना में सुमित ने अपना एक पैर खो दिया। हादसे के बावजूद सुमित ने कभी हार नहीं मानी रिश्तेदारों और दोस्तों के प्रोत्साहन से सुमित ने अपना ध्यान खेल की ओर लगाया और साई सेंटर पहुंच गए। जहां एशियाई रजत पदक विजेता कोच विनेंद्र धनखड़ ने सुमित का मार्गदर्शन किया और उन्हें दिल्ली ले गए। यहां उन्होंने द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच नवल सिंह से भाला फेंक के गुर सीखे।