ऐसे शक्ति प्रदर्शनों से राजनीतिक लहर नहीं आती, विरासत की राजनीति मैं आता ही है ऐसा दौर.. सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

आजकल इस तरह की राजनीति हो रही है कि जन्मदिन और निजी कार्यक्रम मे भी राजनीतिक लहर पैदा करने की कोशिश........

ऐसे शक्ति प्रदर्शनों से राजनीतिक लहर नहीं आती, विरासत की राजनीति मैं आता ही है ऐसा दौर.. सरयूसुत मिश्रा आजकल इस तरह की राजनीति हो रही है कि जन्मदिन और निजी कार्यक्रम मे भी राजनीतिक लहर पैदा करने की कोशिश की जाती है. जब भी वास्तव में कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होता है, तो उसकी कानो-कान खबर मीडिया तक को नहीं होती. गुजरात और पंजाब में हाल ही में नेतृत्व परिवर्तन के साथ जो नया नेतृत्व आया है, उसकी किसी को भी कल्पना नहीं थी. बड़े-बड़े मीडिया समूह भी इस राजनीतिक उलटफेर को भाँप नहीं पाए. लेकिन सामान्य बातों पर राजनीतिक लहर और सनसनी पैदा करने की रोज़ कोशिशें होती रहती हैं. [caption id="attachment_64686" align="alignnone" width="1586"] ajay singh[/caption] मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेता अजय सिंह का 23 सितंबर को जन्मदिन था. उनके निवास पर जन्मदिन की बधाई देने कांग्रेस नेताओं के साथ ही भाजपा के दिग्गज नेता गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और केंद्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पहुंचे थे. वैसे तो सत्ता से दूर नेताओं के जन्मदिन आते-जाते रहते हैं, मीडिया का इस पर कोई ध्यान भी नहीं होता. लेकिन अजय सिंह के जन्मदिन को मीडिया ने काफी तवज्जो दी. दो-तीन दिन पहले ही अजय सिंह नेर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के घर जाकर उनसे भेंट की थी. इसकी भी खबरें बनी थी और जन्मदिन पर जब नरोत्तम मिश्रा उनके घर गए तब  इसकी भी खबरें प्रकाशित हुईं. कुछ अखवारों ने तो यह  भी सूंघने की कोशिश है कि कहीं अजय सिंह पार्टी तो नहीं बदल रहे हैं. यहां तक कि एक अखबार में अजय सिंह ने इस बात का खंडन किया है कि वह कांग्रेसी छोड़ रहे हैं. प्रदेश में 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनने के बावजूद जो अजय सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति के बियाबान में भटक रहे हैं. उन्हें जिनको कांग्रेस ने ही कोई पोस्ट नहीं दी. जो अपनी पार्टी में ही उपेक्षित हैं, वह पार्टी बदल कर कहां जाएंगे ? कोई भी पार्टी शीर्ष पर बैठे नेता को अपनी पार्टी में शामिल करती है. केंद्र मैं जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी और  वेंकैया नायडू केंद्रीय पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री थे. वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे. राज्य के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रहते करीबी संबंध के आधार पर भाजपा में शामिल होने के लिए अजय सिंह भाजपा के मुख्यालय पहुंच गए थे. यह बात सामने आई थी कि अजय सिंह के पिता अर्जुन सिंह ने धमकी देकर अजय सिंह को भाजपा में जाने से रोका था. राजनीति आज सेवा का साधन नहीं, बल्कि प्रोफेशन है. इसे प्रोफेशनल ढंग से ही किया जा रहा है. जब चौधरी राकेश सिंह ने विधानसभा में अजय सिंह द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करते हुए पार्टी छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे तो यह अप्रत्याशित घटनाक्रम था. अजय सिंह ने राकेश सिंह को धोखेबाज और न जाने क्या-क्या कहा था. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब राकेश सिंह की कांग्रेस में वापसी करवाई, तो ठाकुर लाबी ने इसका विरोध किया था. इसी विरोध के कारण चौधरी राकेश सिंह को भिंड उप चुनाव का टिकट नहीं मिल सका. कमलनाथ ने जिले का प्रभार दिया तो इन्हीं लोगो के विरोध के कारण कमलनाथ कोइन्हें हटाना पड़ा. आज  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की राजनीति मैंके  सूत्र कमलनाथ के हाथ में है. अजय सिंह और दूसरे नेता हाथ पैर मार रहे हैं, लेकिन दिल्ली की राजनीति में कोई ठौर नहीं मिल पा रहा है. जब भी जो भी नेता ऐसे दौर से गुजरते हैं और उनकी पार्टी में पूछ-परख नहीं होती तो उनके लिए किसी न किसी बहाने शक्ति प्रदर्शन करना अपरिहार्य होता है. आजकल शक्ति प्रदर्शन खुद के खेमे का ही नहीं, बल्कि ऐसा भी जताने करने के लिए होता है कि हमें महत्व नहीं दिया गया तो हमारे लिए दूसरी पार्टी के दरवाजे भी खुल सकते हैं. यह एक तरह की छुपी धमकी होती है. पार्टी बदलने और यहां तक कि विधायकों द्वारा पार्टी बदलने से सरकारों में हुए उलटफेर के नतीजों के आधुनिक इतिहास को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है. अजयसिंह के पिता स्वर्गीय अर्जुनसिंह ने प्रधानमंत्री नरसिंहराव पर दबाव डालकर सभी भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारें भंग करवाई थीं. अर्जुन सिंह भाजपा और संघ के प्रबल विरोधी थे. विश्व हिंदू परिषद के अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव को कटघरे में खड़ा करने में अर्जुन सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. राम मंदिर आंदोलन में जब अयोध्या में कारसेवकों के पहुंचने का सिलसिला प्रारंभ हो गया था और निर्धारित तिथि के एक दिन पहले अर्जुन सिंह अयोध्या जाने के लिए लखनऊ तक पहुंच गए थे. लेकिन न मालूम किस दबाव में दिल्ली वापस चले गए थे. बाबरी मस्जिद ढहने के बाद अर्जुन सिंह ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर तिवारी कांग्रेस बनाई थी. इस घटनाक्रम के बाद अर्जुन सिंह के राजनीतिक सितारे डूबने लगे थे. अर्जुन सिंह ब्राह्मण और ठाकुर की विन्ध्य की राजनीति में ब्राह्मणों को भी भरपूर सम्मान दिया था. अर्जुन सिंह की जन्म स्थली उनके पुश्तैनी क्षेत्र चुरहट में बाद में विन्ध्य के राजनीतिक समीकरण की अवहेलना की गई. अजय सिंह को अपने घर में ही हार का मुंह देखना पड़ा. कभी मध्यप्रदेश के चर्चित राजनीतिक परिवार के सितारे अजय सिंह राहुल भैया के राजनीतिक सफर में पानी बहुत बह चुका है. इसने पारिवारिक विवादों ने इनकी संभावनाओं को कमजोर किया है. जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन राजनीतिक लहर पैदा करने के प्रयास से अजय सिंह कहाँ पहुंचेंगे यह तो समय बताएगा.फिलहाल कमलनाथ जब तक मध्य प्रदेश की कांग्रेस पर हावी हैं, तब तक किसी के भी मजबूत होने की गुंजाइश बहुत कम लगती है.