राजस्थान के प्रमुख हनुमान मंदिर
-दिनेश मालवीय
वीर-रणबांकुरों की भूमि राजस्थान में वीरों के वीर महावीर हनुमानजी की बहुत प्रतिष्ठा है. इस प्रदेश में हनुमानजी के एक से एक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से कुछ तो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं. मेहंदीपुर बालाजी: भूत-प्रेत माँगते हैं पनाह- जयपुर-बांदीकुई सड़क मार्ग पर स्थित यह स्थान दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिसके कारण इसे' घाटा मेहंदीपुर' कहते हैं. यह मंदिर बहुत चमत्कारिक है. यहाँ मनौतियाँ पूरी होती हैं. भूत-प्रेत, पिशाच, लकवा आदि से बाधित लोग यहाँ ठीक हो जाते हैं. यहाँ पूरे वर्ष भक्तों और पीड़ितों के अलावा सैलानियों का आना-जाना आगा रहता है. यहाँ के प्रमुख देवता तो श्री बालाजी ही हैं, लेकिन यहाँ प्रेतराज श्री भैरवनाथ जी भी वैसे ही महत्वपूर्ण हैं.जनश्रुति के अनुसार यह देवस्थान लगभग एक हज़ार साल पुराना है. बहुत पहले यहाँ कोई मंदिर नहीं था. एक बार मंदिर के महंतों में से किसी पूर्वज महंत को श्री बालाजी ने सपने में आकर यहाँ मंदिर बनवाने का आदेश दिया. उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया. मुग़ल काल मे इस मंदिर को तोड़ने की बहुत कोशिशें हुयीं, लेकिन कोई कोशिश कामयाब नहीं हुयी. कोटा- कोटा के गोदावरी धाम, अमर निवास हनुमान मंदिर भी बहुत चमत्कारिक है. यहाँ भी विस्मयजनक चमत्कार होते रहते हैं. कैसी भी प्रेत-बाधा हो, यहाँ दूर हो जाती है. यह प्राचीन मंदिर चम्बल नदी की सतह में स्थित है, जहाँ आज भी सैंकड़ों फुट जल लहरा रहा है. यहाँ प्रति मंगलवार और शनिवार को दूर-दूर से भक्त, मानसिक रोगी, मंदबुद्धि, निराश और जिज्ञासु दर्शनार्थी आते हैं.
नाथद्वारा- नाथद्वारा वल्लभ सम्प्रदायकी प्रधान पीठ और श्रीनाथ जी का परम पवित्र स्थान है. लेकिन यहाँ स्थानीय तिलकायत नरेशों ने नगर के चारों ओर हनुमानजी की स्थापना की. आज भी पूर्व में सिंहाड के हनुमानजी, पश्चिम में बड़ी बाखर के हनुमानजी, उत्तर में छावनी दरवाजा के हनुमानजी और दक्षिण में चौबेजी के बगीचे के व्यंकट हनुमानजी विराजमान हैं. यहश्रीकृष्ण और श्रीराम की उपासना में समन्वय का सुन्दर उदाहरण है. भारत में यह एक मात्र ऐसा नगर है, जहाँ शीतला-सप्तमी पर अथवा विवाह उत्सव में शीतला माता के साथ-साथ हनुमानजी की पूजा करना अनिवार्य है. विराटनगर: पांडवों के अज्ञातवास का स्थान- जयपुर-अलवर मार्ग पर स्थित यह वही विराट नगर है, जहाँ पांडवों ने अपने अज्ञातवास का तेरहवाँ वर्ष बिताया था. यहीं पर भीमसेन ने राजा के दुराचारी साले की चक का वध किया था. कीचक के वध-स्थल के पास की गुफा आज भी भीमसेन की गुफा के नाम से पुकारी जाती है.
इसी भीम-गुफा के पास की पाँच विशाल पर्वत चोटियों के संधि-स्थल पर श्रीरामचंद्रजी' वीर महाराज' ने श्री वज्रांग प्रभु का विशाल मंदिर बनवाया, जो भूमि तल से 1000 फुट से भी अधिक ऊँचा है. यहाँ हनुमानजी की सात फुट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा प्रसन्न मुद्रा में प्रतिष्ठित है. श्रीबालाजी(बडागांव)- यहाँ का यहविख्यात मंदिर ऐतिहासिकनागौर जिले में है. इसकी स्थापना एकसिद्ध संत शुकदेवपुरी महाराजने की थी. उन्होंनेअपने जीवन के पूर्वार्द्ध में कई वर्षों तक तपस्या की और उन्हें हनुमानजी के दिव्य दर्शन हुए. यहाँ एक हनुमान मंदिर पहले से हीथा.
कुछ समय बाद वहाँ से स्वामीजी श्रीबालाजी आये और उन्होंने इस पहाड़ी को अपनी साधना केलिए चुना. उनकी दीर्धकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीहनुमानजी ने उन्हें दर्शन देकर वर मांगने को कहा. संत ने कहा कि आप गोपालपुरा के अपने दिव्यविग्रह को यहाँ अवस्थापित कर दें. हनुमानजी ने ऐसा वचन दे दिया. संत ने आसपास के लोगों को बुलाकर यह घोषणा कर दी. कि चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन दोपहर में कुछ भूकम्प जैसा आया, जिससे पहाड़ी में दरार पड़ गयी.उसमें से हनुमानजी की पाषाण प्रतिमा प्रकट हुयी. संत ने उसे उसी पहाड़ी पर स्थापित कर दिया. यह शिलामय मूर्ति आज भी भक्तों के चित्त को अपनी ओर आकर्षित करती है. सालासर- श्री रामपायक हनुमानजी का यह मंदिर चूर जिले में है. बालाजी की यह प्रतिमाबहुत प्रभावशाली और दाढी-मूछों से युक्त है. यहाँ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
इस मंदिर की स्थापना मोहनदास जी ने की थी. इसके पीछे एक रोचक कथा है. मोहनदास जी आरम्भ से ही विरक्तवृत्ति वाले व्यक्ति थे और हनुमानजी को इष्ट मानकर उनकी पूजा करते थे. वह जो भी कहते थे वह सही हो जाता था. एक दिन वह अपने एक साथी के साथ खेत में काम कर रहे थे. उन्होंने अपने साथी को बताया कि मेरे पीछे कोई देव पड़ा है, जो मेरा गंडासा छीनकर फेंक देता है. उनके साथी ने भी यह प्रत्यक्ष देखा. साथी के पूछने पर उन्होंने बताया कि संभवत: यह बालाजी हैं. इसके बाद बहुत लम्बी कथाएंआती है. लेकिन सारांश यह है कि मोहनदासजी ने बालाजी की प्रेरणा से इस मंदिर की स्थापना करवायी. इसमें गाँव के ठाकुर सालम सिंह ने मदद की. यह मूर्ति असोटा से मंगवायी गयी थी. यह मूर्ति एक किसान को खेत में हल जोतते हुए जमीन में मिली थी. मंदिर में इसकी स्थापना के समय से ही एक अखंड ज्योति जलती है. मंदिर के सामने ही मोहनदास जी की समाधि है. हनुमानजी की यह लोक-विख्यात प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान है. सिंहासन के ऊपरी भाग में श्रीराम दरबार है और निचले भाग में हनुमानजी श्रीराम के चरणों में बैठे हैं. मंदिर के चौक में एक जाल का पेड़ है, जहाँ लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए नारियल बाँध देते हैं. यहाँ भाद्र्पाद, अश्विन, चैत्र और वैशाख पूर्णिमा के दिन मेले लगते हैं. इनके अलावा, सीकर जिले के पुराम्बकी, बाड़मेर के खेड, पूनरासर, बडू, बीकानेर आदि स्थानों पर भी हनुमानजी के प्रसिद्ध मंदिर हैं.