स्टोरी हाइलाइट्स
मनुष्य का मन बेहद शक्तिशाली है, मन से भी शक्तिशाली है प्राण, प्राण ही काल है, प्राण हर जगह व्याप्त है, हमारे शरीर में भी प्राण ही व्याप्त है| यही प्राण हमारी जिंदगी का वाहक है| शरीर से जब प्राण निकल जाता है तो शरीर नष्ट हो जाता है, प्राण पर अधिकार कर लिया जाए तो मनुष्य लंबे समय तक जवान बना रहता है, जिसने प्राण पर पूरी तरह अधिकार कर लिया तो समझिए उसने काल पर अधिकार कर लिया, ऐसा व्यक्ति लंबे समय तक मृत्यु पर भी विजय रख सकता है|प्राण शरीर को चलाने वाली दैवीय शक्ति है|
अतुल विनोद
मनुष्य का मन बेहद शक्तिशाली है, मन से भी शक्तिशाली है प्राण, प्राण ही काल है, प्राण हर जगह व्याप्त है, हमारे शरीर में भी प्राण ही व्याप्त है| यही प्राण हमारी जिंदगी का वाहक है| शरीर से जब प्राण निकल जाता है तो शरीर नष्ट हो जाता है, प्राण पर अधिकार कर लिया जाए तो मनुष्य लंबे समय तक जवान बना रहता है, जिसने प्राण पर पूरी तरह अधिकार कर लिया तो समझिए उसने काल पर अधिकार कर लिया, ऐसा व्यक्ति लंबे समय तक मृत्यु पर भी विजय रख सकता है|प्राण शरीर को चलाने वाली दैवीय शक्ति है|
अस्तित्व के तीन प्रमुख तल
हमारे अस्तित्व के तीन प्रमुख तल है| शरीर, मन और आत्मा| प्राण-ऊर्जा है जो शरीर को चलाएमान रखती है|
मन अपनी गति से बढ़ता रहता है, प्राण शरीर को प्रभावित करता है लेकिन सीधे तौर पर मन को नहीं| आत्मा- शरीर, मन और प्राण तीनों से ही प्रभावित भी रहती है और अप्रभावित भी|
शरीर एक धुरी है, इस धुरी के आसपास आत्मा, मन और प्राण घूमते रहते हैं| शरीर में ही आत्मा का निवास होता है, |
मन, आत्मा और शरीर के अनुभवों,विचारों,भावनाओं व स्मृतियों का समुच्चय है| जिसके अंदर कल्पना, विचार, मनन शक्ति होती है|
मनुष्य के अंदर तीन प्रमुख शक्तियां काम करती हैं - प्राण शक्ति, मन शक्ति, आत्मा शक्ति| योग में इन तीनो शक्तियों के मेल को चित्त शक्ति कहा जाता है, चित्त शक्ति के निरोध को ही योग कहा जाता है|
जब तक हमारे शरीर के अंदर यह चित्त शक्ति है तब तक हम जीव हैं, और जैसे ही यह चित्त शक्ति हमारे शरीर से बाहर गई वैसे ही हम निर्जीव हो जाते हैं|
इसी तरह प्राण तत्व, मन तत्व और आत्म तत्व मिलकर अध्यात्म तत्व का निर्माण करते हैं, यानि चित्त तत्व ही अध्यात्म तत्व है|
चित्त को ही चेतना कहा गया है
चेतना कि सात अवस्थाएं होती हैं-
जीवात्मा (1-जागृति, 2-सुसुप्ति, 3-स्वप्न)
आत्मा (4-तुरीय),
शुद्धात्मा(5-तुरीयातीत),विशुद्धात्मा(6-भगवत चेतना),दिव्यात्मा(7-ब्राह्मी चेतना)
यह क्रम इस प्रकार चलता है- जागा हुआ व्यक्ति जब पलंग पर सोता है तो पहले स्वप्निक अवस्था में चला जाता है फिर जब नींद गहरी होती है तो वह सुषुप्ति अवस्था में होता है। इसी के उल्टे क्रम में वह सवेरा होने पर पुन: जागृत हो जाता है। व्यक्ति एक ही समय में उक्त तीनों अवस्था में भी रहता है। कुछ लोग जागते हुए भी स्वप्न देख लेते हैं अर्थात वे गहरी कल्पना में चले जाते हैं।
जो व्यक्ति उक्त तीनों अवस्था से बाहर निकलकर खुद का अस्तित्व कायम कर लेता है वही मोक्ष के, मुक्ति के और ईश्वर के सच्चे मार्ग पर है। उक्त तीन अवस्था से क्रमश: बाहर निकला जाता है। इसके लिए निरंतर ध्यान करते हुए साक्षी भाव में रहना पड़ता है तब हासिल होती है : तुरीय अवस्था, तुरीयातीत अवस्था, भगवत चेतना और ब्राह्मी चेतना।
जागृति- जिसमें शरीर, चेतन मन, आत्मा और प्राण क्रियाशील होते हैं| चेतन के अतिरिक्त मन के अन्य भाग सुप्त रहते हैं, चेतन मन के साथ इंद्रिया जुड़ी हुई हैं विषय जुड़े हैं|
स्वप्न- जिसमें मन का एक भाग (चेतन मन) सो जाता है और अवचेतन जागृत हो जाता है यहां शरीर सो रहा होता है और इन्द्रियाँ अर्ध जागृत होती हैं|
सुषुप्ति- यह वह अवस्था होती है जिसमें विचारने,सोचने,देखने,सुनने,स्पर्श,स्वाद लेने की क्षमता सुप्त हो जाती हैं, यानी चेतन मन भी और अवचेतन भी, उस वक्त ना हमें कोई भान होता है ना दिमाग में कोई चित्र होता है, ना कोई आभास होता है, यहां सिर्फ आत्मा जागृत रहती है, मन के अचेतन, भगवत व ब्रह्म चेतन स्वरुप जागृत रहते हैं|
जागृति के बाद जैसे ही हम सुप्त अवस्था में पहुंचते हैं तो हमें पता नहीं होता कि हमारे साथ क्या-क्या हो रहा है, सुप्त अवस्था में हमें समय का पता नहीं होता,सुप्त अवस्था के बाद सामान्यतः जागृत अवस्था आती है, लेकिन यदि सुप्त अवस्था स्थाई बन जाए, फिर जागृति की संभावना खत्म हो जाती है, और व्यक्ति मृत हो जाता है| यदि व्यक्ति न जागे न मृत हो और एक अन्य अवस्था में पहुंचा है, उस अवस्था को समाधि की अवस्था कहते हैं|
सामान्य मनुष्य यदि सोते ही रह जाए तो मृत्यु की दशा में पहुंच जाएंगे, यानी उस वक्त उनकी आत्मा शरीर को छोड़कर बाहर हो जाएगी, और किसी अन्य जगत में प्रवेश कर जाएगी|
यदि व्यक्ति सुप्त अवस्था में इंद्रियों और मन से मुक्त हो जाए तो सिर्फ आत्मसत्ता रह जाएगी और शरीर व आत्मा के बीच अन्य कोई नहीं रह जाएगा| इस अवस्था को तुरीय अवस्था कहते हैं| जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था में आत्मा को विश्व से संपर्क बनाने के लिए मन और इंद्रियों की सहायता लेनी पड़ती है, लेकिन योग मार्ग से जब व्यक्ति तुरीय अवस्था में पहुंच जाता है, तो आत्मा, मन व इंद्रियों से मुक्त होकर सीधे विश्व के साथ संपर्क स्थापित कर लेती है| आत्मा के सिग्नल विश्व तक विश्व के सिग्नल आत्मा तक डायरेक्ट पहुंचने लगते हैं|
अभी तक आत्मा ने जो भी कुछ देखा था वह मन और इंद्रियों के माध्यम से मिला था, यह ज्ञान, दृश्य,श्रव्य शुद्ध नहीं थे क्योंकि यह किसी माध्यम के जरिए आत्मा तक पहुंछे थे| जब माध्यम खत्म हो जाता है तो आत्मा को जो भी कुछ मिलता है वह विशुद्ध होता है| इसी को आत्मज्ञान की अवस्था कहते हैं, जहां ज्ञान पूर्ण रूप से सत्य शुद्ध और प्रमाणिक होता है| दोष और दुर्गुणों से मुक्त होता है|