तस्करों के निशाने पर: भारत के भगवान : मूर्ति तस्करी पर न्यूज़ पुराण की खास खबर


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत के भगवान तस्करों के निशाने पर हमेशा से रहे हैं| भारत से मूर्तियां चोरी करके पूरे विश्व में भेजी जाती रही हैं| यूनेस्को के अनुसार भारत से लगभग 50 हज़ार ऐतिहासिक कलाकृतिया चोरी हुईं हैं| भारत से हर साल चोरी होने वाली मूर्तियों का कालाबाज़ार करीब 10 हजार करोड़ का है | देश के हजारों धार्मिक व एतिहासिक स्थलों से पिछले 100 साल में  अब तक लाखों करोड़ की बेशकीमती मूर्तियां व अन्य बेशकीमती सामान चोरी हो चुके हैं जिसका कोई रिकार्ड नहीं है | हालाकि सरकार कि सक्रियता से कुछ मुर्तिया विदेशों से वापस आती जा रही हैं लेकिन ये बहुत कम हैं |
   
देखिये मूर्ति तस्करी पर न्यूज़ पुराण मीडिया की ये खास खबर -
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भारतीयों की आत्मा यहां के मठ मंदिरों में बसती है ऐसा कोई गांव, टोला या मजरा नहीं होगा जहां पर देवी देवता का कोई स्थल ना हो | सदियों से भारतीयों ने इन मंदिरों को अपनी गाढ़ी कमाई के पैसों से बनवाया सजाया, संवारा और सहेजा | पिछले कुछ दशकों से देवालयों में बैठे भगवान् को तस्करों कि नजर लग गयी है,  पूरे देश में लाखों मठ मंदिर पंजीकृत है लेकिन ज्यादातर में सुरक्षा व्यवस्था ना के बराबर है | तस्कर इसी का फायदा उठा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन मूर्तियों को ऊंचे दामों में बेच रहे हैं | चोरी के कारण मठ और मंदिर वीरान होते जा रहे हैं मंदिरों की मूर्तियां एक-एक करके चोरी जा रही हैं | दरअसल मूर्ति चोरी रोकना किसी भी राज्य की पुलिस के लिए प्राथमिकता कभी नहीं रहा , नाही इसकी कोई समग्र पॉलिसी बनी |जो तस्कर गिरफ्तार किए जाते हैं उनके तार बांग्लादेश थाईलैंड नेपाल से लेकर जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तक जुड़े रहते हैं | भगवान बुध्द, राधा कृष्ण, नारायण , भगवान राम,  देवी, हनुमान की मूर्तियां तस्कर उड़ा ले जाते हैं, ज्यादातर मूर्तियां अष्टधातु की होती है जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी कीमत मिलती है |
भारत से चोरी मूर्तियां बेचता है अमेरिका का ये  फाउंडेशन
क्यों चोरी हो रही हैं, अष्टधातु की प्राचीन मूर्तियां?
 
भारत नेपाल की खुली सीमा मूर्ति तस्करों के लिए सबसे आसान रास्ता बन चुका है, तस्कर प्राचीन बौद्ध मठ और मंदिरों से अष्टधातु की बेशक़ीमती मूर्तियां चुराकर अंतरराष्ट्रीय मार्केट में बेच रहे हैं | इस कारोबार में सबसे ऊंची बोली बुद्ध प्रतिमा की है, लगातार बुद्ध मूर्तियों की बरामदगी से यह बात प्रमाणित भी होती है |अष्ट धातु की मूर्तियों के निशाने पर होने के धार्मिक नहीं आर्थिक कारण भी है प्राचीन भारत में धातुओं को शोधन करने की प्रक्रिया को जानने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं, इस शोध के लिए भी इन मूर्तियों की तस्करी की जा रही है|

देखें video 

https://youtu.be/JOgmRy_Hrwg  
कई जगहों पर तस्करों ने पुलिस के सामने स्वीकार भी किया है कि वे इन मूर्तियों से स्वर्ण जैसी क़ीमती धातु को अलग करने का प्रयास कभी नहीं करते, जबकि मूर्ति चोरी में मिलने वाले धन से अधिक धन मूर्ति से स्वर्ण अलग करने में मिल सकता है | पहले प्राचीन दुर्लभ मूर्तियां, पाषाण निर्मित चुराई जाती थी, पर पिछले कुछ वर्षों से अष्टधातु की मूर्तियां तस्करों के निशाने पर हैं |
एंटिक पीस की मूर्तियों को खुले बाज़ार में नहीं बेचा जा सकता| इस काले कारोबार के दस्तूर के अनुसार चोरी के पहले ही प्रतिमाओं का सौदा हो जाता है | जब सौदे की पेशगी अदा हो जाती है, तभी चोरी की घटना को अंजाम दिया जाता है | जानकार बताते हैं कि जब तक धारा 30(1) एंसिएंट मोनूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमैंस एक्ट 1958 (THE ANCIENT MONUMENTS AND ARCHAEOLOGICAL SITES AND REMAINS ACT, 1958)में कड़े प्रावधान नहीं किए जाते, तब अष्टधातुओं की मूर्तियों पर खतरा मंडराता ही रहेगा |
Image result for चोरी प्रतिमा मूर्ति चोरी का एक पूरा व्यवस्थित तंत्र है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके बड़े-बड़े तस्कर बैठे हैं और हमें इसकी भनक भी नहीं लगती। किसी गांव से जब कोई मूर्ति चोरी होती है तो शायद ही किसी को अंदाजा होता हो कि इस मूर्ति को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेच दिया गया होगा।वर्तमान सरकार भारतीय धरोंहरों को बचाने और उन्हें वापस लाने के लिए दूसरों से अधिक सजग है। केंद्र सरकार की पहल के चलते पिछले दिनों कई मूर्तियां वापस देश लाई गई हैं।
 
ये अंतर्राष्ट्रीय मसला है
 
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने इस संबंध में एक (2119) रिज्योल्यूशन भी पास किया था। इसके अनुसार बहुत से देशों से जो मूर्तियां चोरी हो रही हैं, वो आईएस (इस्लामिक स्टेट) या ऐसे ही अन्य संगठन करवा रहे हैं, जो उसके लिए टेरर फंडिंग के स्रोत हैं। कैग (CAG) ने माना है कि जिन कामों को संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को करना चाहिए वे नौकरशाही और लालफीताशाही के कारण अटक जाते हैं या बहुत देर से हो रहे हैं। कैग (CAG) के अनुसार साल 2000 से 2012 तक एक भी मूर्ति वापस नहीं लाई गई | संयुक्त राष्ट्र संघ के रिज्योलूशन से के हिसाब से हर देश की सरकार को एक नोडल एजेंसी बनानी चाहिए जो इस काम को देखे लेकिन दुर्भाग्य से भारत में अभी इस पर कोई काम नहीं हुआ है।
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कितनी कीमत है तस्करी की हुयी मूर्तियों की ?
इन मूर्तियों की कोई कीमत नहीं होनी चाहिए। ये हमारे पूर्वजों द्वारा दी गईं अनमोल धरोहरे हैं, ये हमारा गौरवशाली इतिहास हैं। इसलिए ये अमूल्य हैं ,लेकिन फिर भी चूंकि ये चोरी-तस्करी पैसों के लिए होती है तो इसे आप दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। एक, न्यूयॉर्क में एक तस्कर के यहाँ छापा पड़ा तो उसमें 106 मिलियन डॉलर (लगभग 7 अरब रुपए) की मूर्तियां बरामद की गईं। दूसरा, मध्यप्रदेश के सतना से यक्ष की मूर्ति जब तस्कर बाजार में 100 करोड़ की बेची गई थी। ये मूर्ति अब वापस आ चुकी है।
निजी संगठनों और सरकार के प्रयास रंग लाये – भारत की धरोहरों का लौटना शुरू -
कौन सी मूर्तियाँ भारत को वापस मिली
2014 से 2017 तक भारत सरकार ने दुनिया भर से 24 भारतीय प्राचीन धरोहरों को पुनः प्राप्त किया जो 2009 से 2014 के बीच में या तो चुराई गयी थीं या उनकी तस्करी की गई थी।
1976 से 2013 के बीच, कुल 13 प्राचीन धरोहरों को देश में वापस लाया गया,
2004 से 2009 के बीच कोई भी प्राचीन धरोहर वापस नहीं लायी गयी थी। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वभर के नेताओं से मिलना और उन तक पहुंचना भी मूर्तियों को वापस लाने का एक प्रमुख कारण रहा है।
ऑस्ट्रेलिया
Indian Prime Minister Narendra Modi (L) and former Australian Prime Minister Tony Abbott talk alongside a statue of the Dancing Shiva ahead of a meeting in New Delhi.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने 900 वर्ष पुराने कांस्य “नृत्य करते शिव” को वापस सौंप दिया था जिसे तस्कर भारत से ले गए थे।
जबकि तमिलनाडु से चोरी हुए अर्धनारीश्वर की एंटीक मूर्ति को 2014 में ऑस्ट्रेलिया से वापस लाया गया था। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया से एक अच्छी खबर आई है ऑस्ट्रेलिया भारत से हासिल  की कई तीन प्राचीन कलाकृतियों को भारत को लौटा रहा है । इन कलाकृतियों में  तमिलनाडू से हासिल की गई 15वीं सदी की  द्वारपाल की मूर्तियां, राजस्थान या मध्य प्रदेश की  छठी से 8वीं सदी की नागराज मूर्तियां हैं। गौरतलब है कि  कलाकृतियों की चोरी और तस्करी के मामले में न्यूयार्क स्थित पूर्व कला व्यापारी सुभाष कपूर के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। कपूर के जरिये ही उक्त कलाकृतियों को खरीदा गया लेकिन इसमें आस्ट्रेलिया सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
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2015 में सिंगापूर ने उमा परमेश्वरी की मूर्ति को लौटाया।
पेरिस
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अन्य कलाकृतियां जो भारत में वापस लौटी हैं उनमें योगिनी वृषणना का नाम भी शामिल है जिसे 2013 में पेरिस से वापस लाया गया था, सॉन स्टूकोः जो अमेरिका और फ्रांस में थी और अब ये भारत वापस आ चुका है|
कनाडा
900 वर्ष पुरानी भारतीय बलुआ पत्थर की मूर्ति जो ‘पैरोट लेडी’ के नाम से मशहूर है, इस एंटीक मूर्ति को कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2015 में सौंप दिया था
जर्मनी
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वर्ष 2015 में जर्मनी ने जम्मू-कश्मीर से लापता हुई की मर्हिषासुरमर्दिनी की मूर्ति को भारत को लौटा दिया था, 2015 में जर्मनी ने दुर्गा की एक मूर्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भारत को सौंपी, मर्हिषासुरमर्दिनी को 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा के एक मंदिर से चुरा लिया गया था। इस संदर्भ में एक एफआईआर दर्ज की गई थी।वर्ष 2012 में एएसआई को खबर मिली कि यह मूर्ति जर्मनी के स्टटगार्ट के लिंडेल संग्रहालय में देखी गई है। इसके बाद केंद्र सरकार ने इसे वापस लाने की प्रक्रिया शुरू की |
यूनाइटेड किंगडम
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टेराकोटा याक्षीः जिसे यूनाइटेड किंगडम ने वापस किया|
हॉलैंड
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हॉलैंड ने सात सजावटी लकड़ी का पैनल भारत को वापस किया|
 
अमेरिका
 
महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को अमेरिका भारत को सौंप चुका है| कृष्ण जन्म की प्रतिमा, अमेरिका ने भारत को वापस कर दी है| अमेरिका ने भारत की 200 पुरानी मूर्तियों को लौटाया है,जिसकी कुल कीमत 10 करोड़ डॉलर के लगभग आंकी गई है| Image result for अमेरिका ने भारत की 200 पुरानी मूर्तियों को लौटाया
ये भारतीय संपत्ति अमेरिका तस्करी के माध्यम से पहुंची थी इधर अमेरिका के संग्रहालय में रखी ‘अप्सरा’ नामक एक हजार साल पुरानी मूर्ति को जल्द ही भारत में वापस लाने की तैयारी  चल रही है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अनुसार यह मूर्ति 10वीं शताब्दी की है। मूर्ति की चोरी मध्य युग में नहीं बल्कि दो दशक पहले राजस्थान के सीकर के बाड़ौली गांव के एक शिव मंदिर से 1998 में हुई थी। वर्षों से अमेरिकी सरकार के साथ मंत्रालय की विस्तृत चर्चा के बाद अब इस बहुमूल्य प्राचीन मूर्ति को भारत वापस लाने की योजना बनाई जा रही है। अभी ये एंटीक मूर्ति अमेरिका के लॉस एंजिल्स संग्रहालय में रखी हुई है।
 
गौरतलब है कि, हाल ही में एक और बहुमूल्य नटराज की प्राचीन मूर्ति को भी यूके ने वापस लौटाने के लिए हामी भरी है जिसे राजस्थान के उसी शिव मंदिर से चोरी किया गया था।
 
ऐसी कलाकृतियां जो देश के बाहर है| और अभी तक भारत वापस नहीं आ पाई हैं -
1--- तमिलनाडु की चोला कांस्य प्रतिमाः तमिलनाडु की चोला कांस्य प्रतिमा, आज सिंगापुर के एशियन सिविलाइजेशन म्यूजियम में है| ये चोल वंश के राजाओं की कांस्य कला से प्रेम को दर्शाता है|
 
तमिलनाडु की चोल कांस्य प्रतिमा
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शिवाजी की तलवार: यह तलवार प्रिंस ऑप वेल्स एडवर्ड सप्तम को नवंबर 1875 में उनकी भारत यात्रा पर कोल्हापुर के राजा ने उपहार स्वरूप दिया था और ये इस समय लंदन में है| यह तलवार साढ़े तीन सौ साल पुरानी है| महारानी एलिजाबेथ से कई बार इसे लौटाने के लिए अनुरोध किए जा चुके है|
 
शिवाजी की शिवाजी की तलवार
 
3---कोहिनूर हीराः कोहिनूर हीरा, 5,000 साल पुराना है यह प्राचीन  इतिहास में लिखे स्यमंतक मणि के नाम से प्रसिद्ध रहा था। शाहजहां ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया। जोकि 1830 में जब महारानी विक्टोरिया भारत आयी थी तो उनके माध्यम से वह ब्रिटेन में है| इसको लेकर भी लोगों मे एक विशेष आक्रोश बना रहता है|
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भारत का कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा हुआ है
4--- दरिया-ए-नूरः
दरिया-ए-नूर भी कोहिनूर की तरह का ही एक बेशकिमती हीरा है|
मुगलकालीन दरिया-ए-नूर कभी मुगल बादशाहों की शोभा बढ़ाता था
सूत्रों के मुताबिक ये किसी बांग्लादेशी बैंक मे है|
5--- टीपू सुल्तान की तलवार और अंगूठीः मई 2014 लंदन में टीपू सुल्तान की सोने की वह अंगूठी नीलाम कर दी गई थी जिस पर 'राम' लिखा था। क्रिस्टीज नीलामी घर ने सोने की इस अंगूठी को एक लाख 45 हजार पाउंड में बेचा था।
टीपू सुल्तान की तलवार
1799 में श्रीरंगापट्टनम की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के हाथों मारे जाने के बाद ब्रिटिश जनरल ने ये अंगूठी उसकी अंगुली से उतार ली थी। टीपू सुल्तान की तलवार को भी लंदन में नीलाम किया गया था।
टीपू सुल्तान की राम नाम लिखी अंगूठी
6--- महाराणा रणजीत सिंह का सिंहासन: शेरे पंजाब मास से मशहूर ये वही रणजीत सिंह थे जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया| इस वक्त विक्टोरिया में एक संग्रहालय में है|
महाराजा रणजीत सिंह का सिंहासन
भारत की तमाम लड़ाईयों और वे देश जो भारत में व्यापार करने खातिर आये थे, उन्होंने तो इसे पूरी शिद्दत से लूटा ही लेकिन आजादी के बाद भी भारत की विरासत, इसकी पहचान और सांस्कृतिक धरोहर इसके बाहर जाती रही|कोहिनूर के अलावा भी भारत की कुछ अमूल्य संपदा भारत के बाहर है कुछ वापस लायी जा चुकी है और कुछ की पहचान जारी है, एक रिपोर्ट की माने तो उसके मुताबिक जो कलाकृतियां भारत की है और भारत के बाहर है,उनकी संख्या तो 17000 है, लेकिन इनमें से 2000 कलाकृतियों की पहचान हो चुकी है|
कैसे होती है तस्करी ?
 
भारत के विभिन्न मन्दिरों से चोरी की गयी बेशकीमती अष्टधातु की मूर्तियों को गोण्डा-बढनी और गोण्डा-रपईडीहा रेलमार्ग, जंगली बीहड रास्तों और गैर परम्परागत मार्गों से एसएसबी जवानों, पुलिस और खुफिया तंत्र को चकमा देकर और सांठगांठ कर आसानी से नेपाल पहुंचा दिया जाता है। कूरियरों को सौदेबाजी की रकम देकर नेपाल के बडे कारोबारी तस्करी की इन मूर्तियों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ऊंचे दामों पर बेच देते हैं। अष्टधातु की बनी इन छोटी से छोटी मूर्तियों की कीमत भी करोड़ों रुपये में होती है। अष्टधातु चूंकि बहुत महंगी है इसलिए चोरों, तस्करों तथा बड़े कारोबारियों की नजरें प्राचीन मूर्तियों पर रहती हैं।
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किसी भी देश की सांस्कृतिक संपदा को हड़पना, तस्करी करना और चुराना तीनों अपराध है| इसे बाकायदा क्राइम के अंतर्गत रखा गया है| न्यूज़ पुराण की अपील है की मूर्ति तस्करी रोकने में आप सरकार का पूरा सहयोग करें | अपने आसपास के मठ मंदिरों की देखरेख में स्थानीय नागरिक भी अपनी भागीदारी निभाएं | हमारी संस्कृति सभ्यता और परंपरा की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, और इस कर्तव्य की पूर्ति के लिए हमें थोड़ा समय देना पड़े, थोड़ी जागरूकता का परिचय देना पड़े तो कोई बुराई नहीं |