प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना समेत तीन जजों की बेंच में हुई। दायर याचिका में पलेसे ऑफ वर्शिप 1991 को चुनौती दी गई। मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि यह मामला पूरा यहूदियों से जुड़ा है। जब तक हम मामले की सुनवाई और निपटारा नहीं कर लेते, तब तक कोई और मामला दायर नहीं किया जा सकता।
CJI ने कहा हमारे पास रामजन्मभूमि मामला भी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार से 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा। मामले की सुनवाई 8 हफ्ते बाद होगी।
CJI संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को निरस्त करने की मांग की गई है। आइए जानते हैं सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट में वकीलों ने क्या दलीलें पेश कीं:-
सुप्रीम कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले के पक्षकार भगवान केशवजी महाराज की ओर से उनके मित्र आशुतोष पांडे ने पूजा स्थल अधिनियम मामले में याचिका दायर की है। इस याचिका में कहा गया है कि बिना सुनवाई के आदेश पारित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट को लंबित मामले पर जल्द उचित निर्णय लेना चाहिए।
CJI ने कहा कि मामला पूरा यहूदियों पर आधारित है। जब तक हम मामले की सुनवाई और निपटारा नहीं कर लेते, तब तक कोई और मामला दायर नहीं किया जा सकता। हमारे पास रामजन्मभूमि मामला भी है। सीजेआई ने कहा कि जो भी मामले दर्ज किए गए हैं, वे जारी रहेंगे। वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि जो भी मामले चल रहे हैं। फिलहाल कार्रवाई रोकने की जरूरत है। सर्वे के आदेश दिये जा रहे हैं।
सीजेआई ने कहा कि ऐसे कितने मामले लंबित हैं? मुझे दो शॉट्स के बारे में पता है। एसजी ने पूछा कि क्या कोई अजनबी, जो मामले में पक्षकार नहीं है, आकर कह सकता है कि सभी कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए।
CJI संजीव खन्ना ने कहा कि हमसे पूछे बिना कोई नहीं बोलेगा। केंद्र को हलफनामा दाखिल करना होगा। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि हां, हमें इसकी जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि कृपया जवाब दाखिल करें और इसे याचिकाकर्ताओं और उत्तरदाताओं को दें। आपके द्वारा इंटरनेट पर ई-कॉपी अपलोड करने के बाद समर्थक उत्तर देख सकते हैं।
आपको बता दें कि संबंधित कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थलों की धार्मिक प्रकृति वैसी ही रहेगी जैसी उस दिन थी। यह किसी भी धार्मिक स्थल को पुनः प्राप्त करने या उसके चरित्र को बदलने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उन्होंने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा दो, तीन और चार को निरस्त करने का अनुरोध किया है। याचिका में एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी भी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक निवारण मांगने के अधिकार को छीन लेते हैं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अवाद ने भी प्लेसेस ऑफ वर्शिप 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि यह कानून सार्वजनिक व्यवस्था, भाईचारे, एकता और धर्मनिरपेक्षता की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
मामले की सुनवाई वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित विभिन्न अदालतों में दायर कई मामलों की पृष्ठभूमि में होगी। इन मामलों में दावा किया गया है कि ये स्थान प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद बनाए गए थे और अनुरोध किया गया है कि हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दी जाए।
इनमें से अधिकतर मामलों में मुस्लिम पक्ष ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए दलील दी है, कि ऐसे मामले स्वीकार्य नहीं हैं। अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ छह याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है। स्वामी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट कुछ प्रावधानों की दोबारा व्याख्या करे ताकि वह वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर मुकदमा कर सकें, उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा कानून असंवैधानिक है और जो व्याख्या सामने आती है उस पर पुनर्विचार करने की कोई जरूरत नहीं है।