पितृपक्ष का पहला श्राद्ध, पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है पितृपक्ष


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स्टोरी हाइलाइट्स

माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष धार्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष को श्राद्ध भी कहा जाता है और इन दिनों पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से सर्वपितृ अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। इस साल पितृपक्ष पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर से शुरू हो गए। लेकिन श्राद्ध की प्रतिपदा तिथि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है इसलिए पहला श्राद्ध 18 सितंबर, बुधवार से मनाया जा रहा है।

सबसे पहले जानिए श्राद्ध पर पितरों को प्रसाद कैसे चढ़ाएं..

प्रथम श्राद्ध की पूजा विधि---

पहला श्राद्ध कुतुप मुहूर्त 18 सितंबर को सुबह 11.50 बजे से दोपहर 12.19 बजे तक रहेगा। इसके बाद रोहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजे से शुरू होकर 1:28 बजे तक रहेगा। अगले दिन दोपहर 1:28 बजे से मुहूर्त शुरू होगा और दोपहर 3:55 बजे तक रहेगा।

श्राद्ध के दिनों में नियमित रूप से पितरों के चित्र के सामने जल चढ़ाना शुभ माना जाता है। तर्पण करने के लिए सूर्योदय से पहले जूड़ी लेकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दी जाती है। इसके बाद एक बर्तन में थोड़ा सा गंगा जल, सादा पानी और दूध लेकर उसमें बूरा, जौ और काले तिल मिला लें और कुशी जूड़ी पर 108 बार जल चढ़ाएं। जब भी चम्मच से जल चढ़ाया जाता है तो मंत्रों का जाप किया जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान....

मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध के दिनों में कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।

दैनिक तर्पण यानी पितरों को जल चढ़ाने की रस्म घर के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति द्वारा की जाती है। यदि घर में कोई वरिष्ठ पुरुष सदस्य न हो तो पोते द्वारा तर्पण कराया जा सकता है।

पितृ पक्ष के दौरान सुबह-शाम स्नान करके पितरों को याद किया जाता है।

पितरों को तर्पण करते समय तेज सुगंध वाले फूलों का प्रयोग न करके हल्की सुगंध वाले फूलों का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।

इसके अलावा पितृ पक्ष के दौरान गीता का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।

पितृपक्ष के दौरान किसी से उधार लेकर श्राद्ध करना उचित नहीं माना जाता है।

पितरों का तर्पण या श्राद्ध दबाव में नहीं करना चाहिए, बल्कि यह कार्य स्वेच्छा से करना चाहिए।