इंसानों द्वारा बनाई गयी चीजें हुईं पृथ्वी के पूरे Biomass से भारी, जानिए इसके मायने


स्टोरी हाइलाइट्स

To develop is the nature of human being. Due to this, today man has developed rapidly in the last few years.

इंसानों द्वारा बनाई गयी चीजें हुईं पृथ्वी के पूरे Biomass से भारी, जानिए इसके मायने विकास करना इंसान का स्वाभाव है. इसी के चलते आज इंसान पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से विकसित हुआ है. इन वर्षों में मानव ने धरती पर अपनी सुबिधाओं को देखते हुए बहुत कुछ विकसित कर लिया है.  इन्हीं मानवीय गतिविधियों के कारण दुनिया में जलवायु परिवर्तन (Climate change) और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) जैसी समस्याएं पैदा हो गई है. इसका बुरा असर अब पूरी दुनिया में देखने को मिलने लगा है. मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी की वायुमंडल ही नहीं बल्कि पानी और जमीन पर रहने वाले दूसरे जीवों का रहना तो मुश्किल हो ही गया है, इसलिए इंसान तक को यह बहुत महंगा पड़ता जा रहा है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि मानव के अस्तित्व के बाद से पहली बार उसकी बनाई चीजें (Human made materials) पृथ्वी के पूरे जीवन संबंधी सामग्री (Biomass) से भारी हो गई हैं. किसने किया अध्ययन यह शोध इजराइल के रोहोवोट में वेइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के रॉन मिलो और उनके साथियों ने किया है जिसमें उन्होंने 1900 से 2020 तक वैश्विक बायोमास और मानवनिर्मित द्रव्यमान में आयेबदलावों का अध्ययन किया है. कितना हो गया है भार अभी प्रकाशित अध्ययन में पता चला है की दुनिया  भर में  मानव निर्मित सामग्री का द्रव्यमान सभी जीवित बायोमास से ज्यादा हो गया है. इंसान के द्वारा किए गए सभी निर्माण और आविष्कार का वजन अब 1100 अरब मैट्रिक टन हो गया है जो पृथ्वी पर मौजूद जानवर, पौधे, फफूंद, बैक्टीरिया, और अन्य सभी जीवों को मिलाकर बनने वाले भार से अधिक हो गया है. कितनी तेजी से बढ़ा ये इस शोध में बताया गया है कि मानवीय गतिविधियों से जितनी भी चीजें बनती हैं, जिसे मानव द्वारा निर्मित द्रव्यमान कहते हैं, वे साल 2020 में उस क्रॉसप्वाइंट से भी आगे निकल गई हैं जो की जीवों के द्रव्यमान से कम होता था. यह मानवजनित द्रव्यमान हर 20 साल में दोगुना हो जाता है. लेकिन 21वीं सदी में बहुत तेजी से बढ़ा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक साल 1900 तक मानवजनित द्रव्यमान कुल बायोमास का केवल तीन प्रतिशत ही था. तीन हजार साल से असर शोधकर्ताओं ने बताया कि इंसान वैश्विक बायोमास का केवल 0.01 प्रतिशत हिस्सा हैं इसके बावजूद पिछले 3000 सालों से हमारी सभ्यता का इस पर बहुत ही व्यापक असर हुआ है. शुरू से ही मानव का दुनिया पर प्रभाव बढ़ता ही गया जिससे सामाजिक आर्थिक  व्यवस्था में सामग्री का प्रवाह, जिसे सामाजिक आर्थिक मेटाबॉलिज्म भी कहते हैं, बहुत तेज गति से बढ़ता रहा. समाज का पदार्थों पर आधारित होते जाने और उद्योग वातारवण बढ़ने से सामाजिक आर्थिक पदार्थ हमारे ग्रह पर जमा होते गए. वैज्ञानिकों की चेतावनी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि 120 साल बाद 2020 में मानवजनित द्रव्यमान पूरी दुनिया के बायोमास से ज्यादा हो जायेगा  जो कि बहुत ही संवेदनशील बात है. शोध के मुताबिक कंक्रीट, धातु, प्लास्टिक, ईंटें और एस्फाल्ट के उत्पादन ने विशेष रूप से इस मामले में योगदान दिया है. वैज्ञानिक अभी के युग को एंथ्रोपोसीन कहते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया का हर व्यक्ति अपने शरीर के वजन जितना मानव निर्मित पदार्थ बनाने के लिए जिम्मेदार है. यह बड़ी गलती यह शोध एक  बार फिर मानव के विकास के नजरिए पर सवालिया निशान खड़ा करता है. आधुनिक सुविधाओं और आविष्कारों को विकसित करते समय कभी यह ध्यान नहीं रखा गया कि जो भी सामग्री हम प्रकृति से ले रहे हैं वह उस तक वापस उस रूप में पहुंचे जिससे वह खुद में वापस समाहित कर सके. हमारी बनाई चीजें अंततः ऐसे कचरे में बदल जाती है जिसे प्रकृति तक परिष्कृत नहीं कर पाती. नदियां हमारे फेंके गंदे पानी को साफ करने की क्षमता खो चुकी हैं. प्लास्टिक का कचरा तो पूरे पर्यावरण के लिए खतरा बन चुका है जिससे उस पर बैन लगाने के अलावा कोई विकल्पन नहीं रह गया है. यह शोध बताता है कि अब इंसानों को पृथ्वी को बचाने के लिए और ज्यादा गंभीर होना ही पड़ेगा. सभी इंसानों को इस खतरे से मिल कर सामना करना पड़ेगा.