स्टोरी हाइलाइट्स
सामान्य दृष्टि से सन्ध्या माने दो समयों का मिलन और तात्त्विक दृष्टि से सन्ध्या का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का मिलन। ‘सन्ध्या’ जीव को स्मरण कराती है......trikal sandhya
त्रिकाल संध्या(trikal sandhya): जानिए क्या मिलता है त्रिकाल संध्या करने से ?
--त्रिकाल संध्या : ---
--सामान्य दृष्टि से सन्ध्या माने दो समयों का मिलन और तात्त्विक दृष्टि से सन्ध्या का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का मिलन। ‘सन्ध्या’ जीव को स्मरण कराती है उस आनंदघन परमात्मा का, जिससे एकाकार होकर ही वह इस मायावी प्रपंच से छुटकारा पा सकता है। त्रिकाल संध्या में सूर्योदय , दोपहर के 12 बजे एवं सूर्यास्त इन तीनों वेलाओं से पूर्व एवं पश्चात् 15-15 मिनट का समय सन्ध्या का मुख्य समय माना जाता है। इन समयों में सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुला रहता है, जो कि कुंडलिनी-जागरण तथा साधना में उन्नति हेतु बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
--सन्ध्या के समय ध्यान, जप, प्राणायाम आदि करने से बहुत लाभ होते हैं|
-जानिए क्या मिलता है त्रिकाल संध्या करने से ?
-1. नित्य नियमपूर्वक सन्ध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है। धीरे-धीरे एकाग्रता में वृध्दि होती है।
-2. भगवान के प्रति आस्था, प्रेम, श्रध्दा, भक्ति और अपनापन उत्पन्न होता है ।
-3. अंतर्प्रेरणा जाग्रत होती है, जो जीव को प्रति पल सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।
-4. अंतःकरण के जन्मों-जन्मों के कुसंस्कार जलने लगते हैं व समस्त विकार समाप्त होने लगते हैं।
-5. मुख पर अनुपम तेज, आभा और गम्भीरता आ जाती है।
-6. वाणी में माधुर्य, कोमलता और सत्यता का वास हो जाता है।
-7. मन में पवित्र भावनाएँ, उच्च विचार एवं सबके प्रति सद्भाव आदि सात्त्विक गुणों की वृध्दि होती है।
-8. संकल्प-शक्ति सुदृढ़ होकर मन की आंतरिक शक्ति बढ़ जाती है।
-9. हृदय में शांति, संतोष, क्षमा, दया व प्रेम आदि सद्गुणों का उदय हो जाता हैऔर उनका विकास होने लगता है।
-10. प्रायः मनुष्य या तो दीनता का शिकार हो जाता है या अभिमान का। ये दोनों ही आत्मोन्नति में बाधक हैं। सन्ध्या से प्राप्त आध्यात्मिक बल के कारण संसार के प्रति दीनता नहीं रहती और प्रभुकृपा से बल प्राप्त होने से उसका अभिमान भी नहीं होता।
-11. प्रातःकालीन सन्ध्या से जाने-अनजाने में रात्रि में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। दोपहर की सन्ध्या से प्रातः से दोपहर तक के तथा सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के पापों का नाश हो जाता है। इस प्रकार त्रिकाल सन्ध्या करनेवाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है।
-12. सन्ध्या करते समय जो आनंद प्राप्त होता है, वह वर्णनातीत होता है। हृदय में जो रस की धारा प्रवाहित होती है, उसे हृदय तो पान करता ही है, प्रायः सभी इन्द्रियाँ तन्मय होकर शांति-लाभ भी प्राप्त करती हैं।
-13. सन्ध्या से शारीरिक स्वास्थ्य में भी चार चाँद लग जाते हैं। सन्ध्या के समय किये गये प्राणायाम सर्वरोगनाशक महौषधि हैं।
-14. त्रिकाल सन्ध्या करनेवाले को कभी रोजी-रोटी के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती।
--और्व मुनि राजा सगर से कहते हैं : ”हे राजन् ! बुध्दिमान पुरुष को चाहिए कि सायंकाल के समय सूर्य के रहते हुए और प्रातःकाल तारागण के चमकते हुए ही भलीप्रकार आचमनादि करके विधिपूर्वक संध्योपासना करे । सूतक (संतान के जन्म लेने पर होनेवाली अशुचिता), अशौच (मृत्यु से होनेवाली अशुचिता), उन्माद, रोग और भय आदि कोई बाधा न हो तो प्रतिदिन ही संध्योपासना करनी चाहिए । जो पुरुष रुग्णावस्था को छोड़कर और कभी सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोता है वह प्रायश्चित्त का भागी होता है अतः हे महीपते ! गृहस्थ पुरुष सूर्योदय से पूर्व ही उठकर प्रातःकालीन संध्या करे और सायंकाल में भी तत्कालीन संध्या-वंदन करे, सोये नहीं ।”
इससे ओज, बल, आयु, आरोग्य, धन-धान्य आदि की वृध्दि होती है । आजकल की व्यस्त दिनचर्या में भी हमे समय निकाल कर सुबह शाम की दो संध्या तो अवश्य ही करनी चाहिए और यदि तीनो समय की संध्या सम्भव हो सके तो अति उत्तम होगा।
-- रामेश्वर हिंदू
-- अखिल विश्व गायत्री परिवार
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