भोपाल। उज्जैन में वर्ष 2028 में सिंहस्थ का आयोजन किया जाना है। सिंहस्थ को लेकर प्रदेश सरकार ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं और सिंहस्थ की तमाम व्यवस्थाओं के लिए सरकार ने किसानों को जमीन अधिग्रहण करने का नोटिस जारी किया है। यह प्रक्रिया कोई नयी है। हर बार सिंहस्थ के समय स्थानीय प्रशासन एक से कई माह पहले से उज्जैन नगरीय निकाय में स्थित सिंहस्थ मेले में उपयोग की जाने वाली किसानों की जमीनों का अधिग्रहण करता है। जिसके बदले में उन्हें एक तयशुदा राशि दी जाती है। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जमीन अधिग्रहण को लैंड पुलिंग योजना में परिवर्तित करते हुए किसानों को नोटिस जारी कर दिया कि जितनी भी जमीन सिंहस्थ के लिये अधिग्रहित की जा रही है उसमें से केवल 50 प्रतिशत जमीन ही सिंहस्थ के बाद किसानों को वापस की जायेगी यानि अगर किसी किसान की पांच एकड़ जमीन सरकार ने लैंड पुलिंग योजना में ली है तो उसके बाद उसे केवल ढ़ाई एकड़ जमीन ही वापस की मिलेगी। बची हुए जमीन पर उज्जैन विकास प्राधिकरण रेत, सीमेंट और कांक्रीट से पक्के निर्माण कार्य करेगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिंहस्थ मेला के लिये सुरक्षित क्षेत्र में पक्के निर्माण कार्य पर लगी है रोक
किसानों और कानूनी सलाहकारों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं आदेश देते हुए राज्य सरकार को चेताया है कि जिस जमीन को सिंहस्थ के लिए अधिग्रहित किया जा रहा है उस जमीन पर सरकार को किसी प्रकार के पक्के निर्माण की परमीशन नहीं होगी। वह पूरी जमीन किसानों की है और उस पर मालिकाना हक भी किसानों का ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में यह स्पष्ट किया है कि सिंहस्थ मेला के लिये सुरक्षित जमीनों पर किसी भी तरह की बिल्डिंग, उद्योग या कॉलोनाईजेशन की परमीशन नही है। लेकिन मोहन यादव सरकार उज्जैन विकास प्राधिकरण के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवेहलना करने के लिये तैयार है और लगभग 500 से अधिक किसानों की लगभग 23 सौ हैक्टेयर जमीन को मनमाने ढंग से अधिग्रहित करने की तैयारी कर रहा है।
सत्ता से लेकर प्रशासन तक सभी बैठे हैं मौन
विगत 04 मार्च 2025 को पहले अपनी जमीन को गलत ढंग से अधिग्रहित करने की योजना का विरोध करने और स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन देने के लिये जिले के किसानों ने टैक्ट्रर रैली निकाली। इस रैली को रोकने के लिये स्थानीय प्रशासन और पुलिस बल ने काफी पुरजोर कोशिश की और किसान प्रतिनिधि सुरेन्द्र चतुर्वेदी को ट्रेक्टर रैली की परमीशन के लिए एडीएम कार्यालय में बुलाया गया। कार्यालय पहुंचे चतुर्वेदी को लगभग सुबह से लेकर रात तक नज़रबंद कर बैठा कर रखा गया और उन्हें यह ट्रेक्टर रैली निकालने से रोकने के लिय मजबूर किया गया लेकिन अपनी बात पर अडिग चतुर्वेदी ने उनकी एक नहीं सुनी और यह ट्रेक्टर रैली रोकने से साफ मना कर दिया। जबकि इतिहास कहता है कि जब-जब देश में किसानों ने आवाज उठाई है और उनकों हक देने के बजाय सरकारों ने उन्हें रोका है, तब उसका परिणाम आगामी चुनावों में जरूर देखने को मिला है।
चौथे स्तंभ को रोकने का किया गया प्रयास
किसानों की ट्रैक्टर रैली के कवरेज के लिये उज्जैन में आंदोलन स्थल पर पहुंची मीडिया टीम। वहां कई किसानों से बातचीत की गई, उनके किसान संगठन के पदाधिकारियों से इंटरव्यू हुए। जब एक किसान बता रहे थे कि हम लोग यहां पर अपनी बात रखने आये हैं और प्रशासन हमारे घरों को तोड़ने के लिये मुनादी करवा रहा है। उनके घर से किसी ने उन्हें फोन पर यह बात बताई थी। तभी एक स्थानीय महिला पुलिस बल सक्रिय हुआ और पुलिस अधिकारी श्वेता गुप्ता और अन्य गिरफ्तार करने के लिये आगे बढ़ी। पुलिस बल को आगे बढ़ता देख सैकड़ों किसान एकत्रित हो गये और उन्होंने पुलिस प्रशासन के इरादों पर पानी फेर दिया। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से लेकर देश और प्रदेश की रीढ़ की हड्डी किसान भाईयों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाने के लिए कार्य कर रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि किसान, सत्ता, शासन और प्रशासन की इस लड़ाई में जीत किसकी होती है। क्या मोहन यादव सरकार किसानों के सामने नतमस्तक होकर अपने फैसले को बदलेगी क्योंकि किसानों ने यह स्प्ष्ट कहा है कि हमारी सिंहस्थ और महाकाल के लिये असीम श्रद्धा है। हमारे पूर्वज हमेशा से सिंहस्थ में अपना योगदान देते आये हैं और हम भी देने को तैयार हैं। लेकिन पूर्ववत की भांति हम सिंहस्थ के लिये अपनी जमीन का अधिग्रहण करवाने के लिये तैयार हैं लेकिन हम लैंड पुलिंग के माध्यम से अपनी जमीनों पर स्थाई निर्माण नहीं होने देंगे और सत्ता और प्रशासन की जो मंशा है कि हमारी जमीनों को हड़प कर उसमें पक्के निर्माण करें, हम उसका हमेशा विरोध करते रहेंगे।