स्टोरी हाइलाइट्स
पांव के नीचे हमारे है ज़मीं कमक्या करें इस दौर के हैं आदमी हम।उसको ही बर्बाद करने पर तुले हैंकह रहे जिसको हमारी सरज़मीं हम।क्या हमारी गफलतें मत पूछिएगाहम....
पांव के नीचे हमारे....दिनेश मालवीय"अश्क"
पांव के नीचे हमारे है ज़मीं कम
क्या करें इस दौर के हैं आदमी हम।
उसको ही बर्बाद करने पर तुले हैं
कह रहे जिसको हमारी सरज़मीं हम।
क्या हमारी गफलतें मत पूछिएगा
हम कहीं ख़ुद को समझते, हैं कहीं हम।
आज तो ये ही सभी बस मानते हैं
दूसरा कुछ भी नहीं, बस हैं हमीं हम।
आपको लगता नहीं है क्या कभी यह
आदमी ही रह गये हैं अब नहीं हम।
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