स्टोरी हाइलाइट्स
मान्यवर ब्रांड का “कन्यादान” वाला विज्ञापन इस समय चर्चा में है। और हो भी क्यों न ? हर प्रकार का तड़का उसमें लगा हुआ है..
“मान्यवर” कन्यादान का असली मतलब समझ लें, हिन्दू धर्म में गोत्रदान की परम्परा.. सरयूसुत मिश्रा
मान्यवर ब्रांड का “कन्यादान” वाला विज्ञापन इस समय चर्चा में है। और हो भी क्यों न ? हर प्रकार का तड़का उसमें लगा हुआ है ! विवाह की पौशाक बेचने वाली कम्पनी “मान्यवर” के विज्ञापन में एक हिन्दू परम्परा के प्रति बड़े अज्ञान का परिचय दिया गया है. पता नहीं यह अज्ञान है या सोची-समझी साजिश. इसमें फिल्म अभितेत्री आलिया भट्ट कहती है कि “मैं कोई दान करने की चीज नहीं हूँ, क्यों सिर्फ कन्यादान” हिन्दू धर्म में विवाह के समय पिता के गोत्र से वर का गोत्र स्वीकार करने की प्राचीन परम्परा को कन्यादान के रूप में जाना जाता है. इस शब्द को लेकर आज के अनेक लोग काफी आपत्ति जताते हैं. उनका कहना है कि, कन्या कोई वस्तु नहीं है, जिसे दान किया जाये. ऊपर से देखने में यह बात लॉजिकल लगती है, लेकिन यह इस शब्द का सही मतलब नहीं समझने के कारण हो रहा है. पहले से ही दिग्भ्रमित लोगों को ऐसा कहकर और भ्रमित किया जा रहा है.
हिन्दू धर्म में गोत्र का बहुत महत्त्व है. शादी-विवाह के मामले में गोत्र जानकार ही निर्णय लिया जाता है. शादी के पहले लड़की का गोत्र उसके पिता का होता है. शादी के बाद उसका गोत्र पति के गोत्र में बदल जाता है. हिन्दू धर्म में वर-वधु के समान गोत्र का होने पर विवाह नहीं हो सकता. बाक़ी धर्मों में गोत्र की कोई मान्यता नहीं है. सनातन धर्म में गोत्र के दान की परम्परा इसलिए है, क्योंकि समान गोत्र में विवाह संभव नहीं है. विवाह के बाद से कन्या वर के परिवार में शामिल हो जाती है. उसकी पुरानी पहचान पहले की तरह नहीं रहेगी. लड़की का पिता लड़की का नहीं, बल्कि गोत्र का दान करता है.
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यह बिल्कुल नहीं कि पिता कन्या का दान कर देता है और उसका पिता के घर से कोई ताल्लुक नहीं रह जाता. आजकल तो शादी के बाद भी लड़की का पिता की सम्पत्ति में समान अधिकार होता है. शादी के बाद कन्या को पिता की सम्पत्ति में अधिकार होने को कानूनी संरक्षण मिला हुआ है. यह विज्ञापन भले ही शरारतपूर्ण नहीं हो, लेकिन हिन्दू धर्म की परम्पराओं को ठीक से नहीं समझने का परिचायक है. हिन्दू धर्म की परम्परा को विवादास्पद बनाकर ब्रांड चमकाने की यह सोची-समझी साजिश ही लगती है. प्रत्येक धर्म में विवाह की अलग-अलग परम्पराएं हैं, जो उनकी मान्यताओं के अनुसार होती हैं. विवाह के पवित्र बंधन में वर-वधु आपसी सहमति से एक साथ जीवन गुजारने का संकल्प लेते हैं. इस संकल्प को मूर्त रूप देने के लिए हर धर्म की अपनी अपनी पद्धति है. हिन्दू धर्म में अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं. सात फेरों में वर और वधु के समान अधिकार और दायित्व का सन्देश छिपा होता है. फेरों में चारे फेरे में वर आगे होता है और कन्या पीछे होती है. तीन फेरों में कन्या आगे होती है.
“मान्यवर” ब्रांड में विवाह की पोशाक को विज्ञापन में कन्यादान की चर्चा है. हिन्दू धर्म में विवाह को कोई करार या अग्रीमेंट नहीं बल्कि इसे सात जन्मों का बंधन माना जाता है. हिन्दू धर्म में पत्नी को पुरुष की अर्धांगिनी की मान्यता है .इस धर्म में कोई भी धर्र्मिक कार्य बिना पत्नी के संभव नहीं हैं. बिना धर्मपत्नी के धर्म के लिए किये गये किसी भी कार्य का फल नहीं मिलता. हिन्दू धर्म में विवाह की पवित्रता और कन्या को मिलने वाला समान अधिकार किसी भी धर्म में नहीं है. जो धर्म स्त्रियों की समानता और सम्मान के लिए समर्पित है,उसके बारे में ब्रांडिंग के लिए दुष्प्रचार घोर आपत्तिजनक है. असलियत ये है कि विज्ञापनों में ही स्त्रियों को वस्तु के रूप में दिखया जाता है| विज्ञापनों में जिस तरह से स्त्री के प्रस्तुतिकरण होता है. वास्तव में उसका विरोध होना चाहिए. गौर करने वाली बात यह है कि इस तरह की कम्पनियों की वैवाहिक परिधानों की बिक्री उन्हीं परम्पराओं के कारण हो रही है जिन्हें ये गलत ठहराती हैं. कंपनियां जिन्हें अपना सामान बेचती हैं उन्हीं की परंपरा, संस्कृति का मजाक उड़ाती हैं। ऐसे में हिन्दुस्तानी समाज को इन ब्रांडों पर सोचना चाहिए और प्रतिक्रिया करके उन्हें जवाब देना चाहिए.