भोपाल। गर्मी की शुरुआत में ही मध्यप्रदेश के प्रमुख जलस्रोत तेजी से कम हो रहे हैं। जलस्तर नीचे गिर रहा है। नदियों में पानी सूख रहा है। यह चिंताजनक संकेत हैं, क्योंकि नदियों में पानी नहीं होने के कारण जलसंकट की स्थिति विकराल हो सकती है। जानकारी के अनुसार इस गर्मी में प्रदेश की 30 से अधिक नदियों पर सूखने का खतरा मंडरा रहा है। नदियों के अलावा ग्राउंड वाटर स्तर भी नीचे जा रहा है। प्रदेश के कई जिलों में जलसंकट की आहट सुनाई देने लगी है। विगत दिनों जल संसाधन और ग्वालियर के जिला प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में गर्मियों के मौसम में बेहतर जान आपूर्ति को लेकर क्षेत्रीय प्रतिनिधियों ने सवाल खड़े किए। इस दौरान भाजपा के विधायकों ने विभाग के अधिकारियों पर लापरवाही का भी आरोप लगाया है।
देवास, खंडवा, रायसेन सहित राज्य के आधे से ज्यादा जिले पेयजल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं। गत बजट सत्र में तीन दर्जन से अधिक विधायकों ने जल जीवन मिशन में हुए घोटाले, लापरवाही और गड़बड़ी को लेकर सवाल खड़े किए। जिसमें सरकार ने गोलमाल जवाब दिए। जल जीवन मिशन में घोटाले को लेकर लगातार मामले सामने आते जा रहे हैं। जबकि रीबा, सौथी, शहडोल, ग्वालियर सहित प्रदेश के कई जिलों में जल जीवन मिशन में किया गया पोटाला उजागर हो चुका है। जिन विधायकों ने विधानसभा में मामले उठाए हैं उनमें बैतूल के विधायक हेमंत खंडेलवाल ने जल जीवन मिशन के तहत स्वीकृत योजनाओं में कुछ गांव छूट जाने को लेकर सवाल उठाया। इस तरह प्रदेश भर में जल जीवन मिशन के तहत कराए जा रहे कामों में घटिया सामग्री इस्तेमाल करने एवं ठेकेदारों द्वारा गुणवत्ता विहीन कार्य करने के आरोप विधायकों ने लगाए।
इन विधायकों ने उठाए थे सवाल
बैतूल विधायक हेमत खंडेलवाल, रीवा विधायक दिव्यराज सिंह, गंजबासौदा विधायक हरिसिंह, अभिजीत शाह टिमरनी, दिनेश जैन महिदपुर, भूपेंद्र सिंह खुरई, हरदीप सिंह डंग मंदसौर, धीरेंद्र लोधी बड़ामलहरा, सुरेंद्र सिंह, विजयपाल सिंह होशंगाबाद, प्रदीप लारिया सागर, हीरालाल अलावा झाबुआ, कालुसिंह ठाकुर धार, राजेंद्र पांडे, बाबूलाल जडेल, सोनलाल वालमी, विश्वामित्र पाठक, शरद कोल, श्रीकांत बतुर्वेदी, अमरीश बाबु, विक्रांत भूरिया आदि विधायकों ने जीवन जवन मिशन में हो रहे चोटालों को लेकर विधानसभा में प्रश्न उठाए थे।
अफसर लगा रहे योजना को पलीता
प्रदेश में 2003 तक गांव-गांव शुरु पेयजल पहुंचाने के लिए की गई कवायद 2025 में भी अधूरी है। पेयजल व्यवस्था के लिए संसाधन बढ़ाने पर भारी भरकम राशि खर्च हो चुकी है। लेकिन मैदानी हकीकत एकदम अलग है। प्रदेश के आदिवासी इलाकों में गर्मी शुरू होते ही पेयजल संकट आने की खबरे आने लगी हैं। नलजल योजना दिखावा साबित हो रही है। इसकी वजह भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी बताई जा रही है। प्रधानमंत्री की इस महत्वकांक्षी योजना को प्रदेश के अफसर दीमक की तरह खोखला कर रहे है। अभी तक प्रदेश की 64 फीसदी आबादी को ही जल जीवन मिशन योजना का लाभ मिल पाया है। जबकि इस योजना का 100 प्रतिशत लक्ष्य 2023 मार्च तक पूर्ण होना था, जो आजतक नहीं हो पाया है। आज भी प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्र यहां तक कि राजधानी के आसपास के कई गांव पेजयल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं।
30 से अधिक नदियों पर सूखने का खतरा
प्रदेश में 30 से अधिक नदियों पर सूखने का खतरा मंडरा रहा है। 3 लाख 8 हजार 245 वर्ग किमी क्षेत्र में बहने बाली नर्मदा, बेतवा, सोन, ताप्ती, चंबल, सिंथ, माही, पार्वती, धसान, केन, कुनो, क्षिप्रा जैसी नदियों से अत्यधिक जल दोहन और अवैध रेत उत्खनन के कारण यह खतरा पैदा हुआ है। जबकि, शहरी नदियां जमीन के लालच में अतिक्रमण का शिकार हो चुकी है। पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन से भी नदियों का प्रवाह लगातार घट रहा है।
अभी अप्रैल माह में ही सूखने का संकट है तो आने vaले दिनों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश की सात प्रमुख नदियों की 150 से अधिक सहायक नदियों की धारा फरवरी -मार्च में ही टूट गई थी। गुणवत्तायुक्त रेत की वजह से चेतना, नर्मदा, सोन, सिंध, पार्वती और चंबल पर रेत माफिया का कब्जा है। कड़े नियम न होने और अवैध उत्खनन पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, जिससे रेत माफियाओं के हौंसले बुलंद हैं। उल्टे प्रदेश के मंत्री खुद रेत माफिया को पेट माफिया की संज्ञा दे चुके हैं। जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के 317 विकासखंडों में से 26 को जल-शोषण की दृष्टि से अत्यधिक श्रेणी में रखा गया है। 2020-21 की ग्राउंड वाटर ईयरबुक के मुताबिक, प्रदेश में 63.24 प्रतिशत स्थानों पर भूमिगत जल स्तर गिरा है।
भूजल दोहन हर साल 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के चार प्राध्यापकों के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि भूजल दोहन हर साल 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। कुल जल दोहन 62 प्रतिशत तक हो गया है। 2030 तक जलस्तर को 3.9 से 8.8 मीटर तक गिर सकता है। वहीं, उज्जैन की शिप्रा नदी को शुद्ध करने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन अभी भी सुधार उतना नहीं है, जितना होना चाहिए। इंदौर को कान्ह, ग्वालियर की स्वर्णरेखा और मुरार, जबलपुर की बंजर, होशंगाबाद की तवा, पलकमती और देनवा, रायसेन की तेंदुबी, बुंदी, सीहोर की ऊंटी, हथनी जैसी नदियां भी सूखने की कगार पर हैं।
नदियों की लम्बाई और वर्तमान स्थिति
* चंबल : महू-इंदौर से इटावा तक 843 किमी, मुरैना के पास धारा कमजोर।
* पार्वती : आष्टा सीहोर से पाली श्योपुर तक 383 किमी, श्योपुर के पास धारा कम।
* क्वारी : बेवलपुर-शिवपुरी से अम्बाह मुरैना तक 200 किमी. मुरैना में बहाव घटा।
* सिंघ : सिरोज से जालौन तक 470 किमी, धारा टूटने लगी।
* बावनथडी : सिवनी से निकली, दम तोड़ रही है।
* टमस : मैहर और सतना से निकलकर सूखने की कगार पर।
* कान्ह : इंदौर की अब नाला बन गई। शिप्रा तक नहीं पहुंचता जल।
* नर्मदा : अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक 1312 किमी, रेत माफिया के शिकंजे में।
* ताप्ति : मुलताई से खंभात की खाड़ी तक 724 किमी, जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्भर।
* चंबल (चर्मावती): जानापाव (महू) से यमुना संगम तक 965 किमी, संरक्षित लेकिन संकटग्रस्त।
* बेतवा (वेत्रवती) : रायसेन से निकली, यूपी-एमपी में कुल 590 किमी बहती है।
* माही : मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात में 580 किमी बहकर अरब सागर में मिलती है।
* सोन : अमरकंटक से गंगा तक 724 किमी, अवैध उत्खनन की शिकार है।
* स्वर्णरेखा : मुरार (ग्वालियर) ऐतिहासिक नदिया, अब केवल कागजों में हैं।