अक्सर हमारे मन में जिज्ञासा होती है कि उपनिषद क्या हैं? वेदांत और उपनिषद में क्या अंतर है? वेद और वेदांत में क्या डिफरेंस है?
भारतीय सनातन दर्शन में वेद के अंतिम भाग को उपनिषद कहा जाता है। इसके उलट उपनिषद वेद के अंतिम भाग होने के कारण वेदांत कहलाते हैं।
उपनिषदों को वेद का ज्ञान खंड कहा जाता है।
ज्ञान उपनिषदों में भरा पड़ा है लेकिन उस ज्ञान को आत्मसात करना इतना आसान नहीं है।
संत कहते हैं कि उपनिषद ज्ञान के आदि स्रोत हैं और विद्या के भंडार हैं।
वेदांत से जुड़कर सामान्य मनुष्य ज्ञान की कमी से मुक्त होकर अनंत ज्ञान की सत्ता से जुड़ सकता है।
इस ज्ञान में सामर्थ्य भी है इस ज्ञान में शक्ति भी है।
इस ज्ञान में आनंद भी है और इस ज्ञान में जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त करने की विधि भी है।
हम अपने कर्मों का फल कैसे भोगते हैं? कर्म कहां स्टोर होते हैं? कर्म किस रूप में स्टोर होते हैं? अतुल विनोद
उपनिषदों का ज्ञान यानी वेदांत को ग्रहण करना कठिन क्यों है?
दरअसल वेदांत से जुड़ने का अर्थ ही यह है कि आपने अंतःकरण में ज्ञान की ज्योति प्रदीप्त कर ली।
जैसे गंदे कपड़े पर अच्छे से रंग नहीं चढ़ता, जैसे बंजर भूमि में धान का अंकुरण नहीं होता, जैसे बेंत में फूल और फल नहीं खिलते वैसे ही मूर्ख अज्ञानी जड़ और बंजर मन में आत्म निष्ठा की वेदांत रूपी बुद्धि नहीं बैठ सकती।
यह तो अपने अंदर ही ब्रह्म को महसूस करने का विधान है, यह अपने अंदर ब्रह्म विद्या के अंकुरण का विज्ञान है, यह वह ज्ञान है जो हमें हमारा वास्तविक स्वरूप बताता है, यह वह ज्ञान है जो हमें बताता है कि हम अपने वास्तविक स्वरूप, अजन्मे, अविनाशी, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त सच्चिदानंद को भूल गए हैं।
अपने आपको जन्म मरण कर्ता-भोक्ता, सुख दुख से भरे हुए मान बैठे हैं, और जगत में खुद के द्वारा निर्मित कर्मों के बंधनों में बंध कर जन्म मरण में फंस गए हैं। हम नासमझी में ही अनंत प्रकार के दुख भोग रहे हैं।
वेदांत कहता है "ब्रह्म सत्यम - जगत मिथ्या" अब यह बात कहने सुनने में बहुत आकर्षक व रोमांचकारी लगती है लेकिन हम कैसे मान लें कि ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या?
सामान्य रूप से बुद्धि इस बात को एक्सेप्ट नहीं करती कि वो सब कुछ असत्य है जो दिख रहा है।
यदि किसी व्यक्ति से मैं कहूं कि जगत मिथ्या है|
वह मुझे पिन टोबेगा और बोलेगा कि बताओ दर्द हुआ कि नहीं?
मैं कहूंगा कि दर्द हुआ तो कहेगा अब कैंसे ये मिथ्या है?
बहुत कठिन है इस तरह जांचना, इस ज्ञान को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, अनुभूत किया जा सकता है।
जब अंतर्ज्ञान हो जाता है तो सत्य और मिथ्या की पहचान हो जाती है।
कैसे जीव और ब्रह्म एक ही है?
कैसे जीव ब्रह्म से अपने आपको अलग महसूस करने लगता है?
कैंसे जीव अपने आप को संकुचित और दुख भरा हुआ महसूस करने लगता है?
ये जानना ही वेदांत है।
हमारे अंदर ऐसी उत्कंठा पैदा करनी पड़ेगी जो हमें स्थाई सुख की प्राप्ति की तरफ आगे ले जाने के लिए प्रेरित करे।
अध्यात्म वेदांत का पर्यायवाची ही है।
अध्यात्म का अर्थ यह है कि हम अपने आत्मस्वरूप को जाने पहचाने और सृष्टि को समझे।