क्या है मंदिरों की ख़ास आकृति का गूढ़ रहस्य? ज्योतिर्लिंगों में छिपा है अदृश्य विज्ञान?
स्टोरी हाइलाइट्स
भारत में बने मंदिर सिर्फ आस्था और श्रद्धा का केंद्र नहीं हैं| मंदिरों की आकृति प्राचीन विज्ञान के गूढ़तम रहस्य की अभिव्यक्ति है|
...अतुल विनोद:
भारत में बने मंदिर सिर्फ आस्था और श्रद्धा का केंद्र नहीं हैं| मंदिरों की आकृति प्राचीन विज्ञान के गूढ़तम रहस्य की अभिव्यक्ति है| भारत के सामान्य से लेकर प्रचलित मंदिरों की आकृतियों के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान भी है| भारतीय मंदिर की अभूतपूर्व संरचनाएं वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल देती है| यहां तक की कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि प्राचीन काल में जरूर किसी दूसरे ग्रह से आए बुद्धिमान प्राणियों “एलियंस” ने मानव को इन संरचनाओं का विज्ञान समझाया होगा| और इसी कारण मंदिरों के रूप में इन संरचनाओं के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ|
इन संरचनाओं के पीछे कोई रहस्यमई बुद्धि जरूर है| भारत के मंदिरों में सबसे ज्यादा रहस्यमई मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग हैं| प्राचीन भारतीय अध्यात्मिक विज्ञान भारत की भौगोलिक संरचना से बहुत अच्छी तरह वाकिफ था भारत में एक तरफ हिमालय की ऊंचाई है तो दूसरी तरफ समुद्र तल भारत का सिर बहुत ऊंचा है तो पैर बहुत नीचे|
कहते हैं कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने डेविस संदेशों के मुताबिक इन 12 शिवलिंग की स्थापना की और इनकी स्थापना बहुत सोच समझकर पूरी तरह वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप की गई| पूरा भारत एक मानव की आकृति की तरह दिखाई देता है|
हिमालय में शिव विराजमान है जिस तरह मनुष्य के सबसे ऊपरी तल में सहस्रार चक्र यानी परम शिव का स्थान बताया गया है, उसी तरह से भारत के शिखर पर कैलाश में शिव जी बैठे हुए हैं|
शिव ऊर्जा का केंद्र है| मानसरोवर हिमालय के शीर्ष में है यहीं से शिव की ऊर्जा नीचे की तरफ प्रवाहित होती है| मानसरोवर में बैठे शिव ऊर्जा के प्रमुख स्रोत है और धीरे-धीरे जैसे-जैसे हम नीचे आएंगे उस ऊर्जा से अप्लावित शिवलिंग की स्थापना दिखाई देती है|
भारत के शीर्ष पर शिव के बैठे होने के पीछे सिर्फ प्राचीन मान्यताएं या कथा कहानियां नहीं है, इसके पीछे ऊर्जा का एक बड़ा विज्ञान नजर आता है| हमारी धरती भले ही हमें ठोस दिखाई देती है लेकिन यह भी एक विलक्षण ग्रह है यह एक जीवित ग्रह है, जिसका नाभिक लगातार कार्य कर रहा है|
पृथ्वी की ऊपरी लहर से इस तरह की ऊर्जा तरंग का उत्सर्जन होता है| पिरामिड या शंख आकार आकृति से प्रक्षेपित होकर यह तरंगे आकाश की तरफ गमन करने लगती है| क्रिया के फलस्वरूप प्रतिक्रिया होती है| यह तिरंगे आकाश की तरफ बढ़ती है आकाश की तरंगे धरती की तरफ बढ़ने लगती है|
जैसे मोबाइल टावर, मोबाइल के सिग्नल सेटेलाइट तक प्रक्षेपित भी करते हैं और सेटेलाइट के सिग्नल रिसीव भी करते हैं उसी तरह से भारतीय मंदिर या शंख आकार देवस्थल धरती के सिग्नल प्रक्षेपित करते हैं और ब्रह्मांड के सिग्नल और ऊर्जा आकर्षित करते हैं|
शंख आकार या पिरामिड आकृति से आकर्षित ब्रह्मांडीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रवाहित होने लगती है| यह ऊर्जा उस देवालय के आसपास एक निश्चित क्षेत्र के परिमंडल को प्रभावित करती है|
मान्यता है कि ऊर्जा पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव जंतु पेड़ पौधों आर मनुष्यों के लिए बेहद लाभदायक है इसी को ध्यान में रखकर भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है यह सभी ज्योतिर्लिंग जमीन यानी पृथ्वी के अंदर से लेकर थोड़े बाहर तक निकले हुए हैं| यह मुख्य ऊर्जा केंद्र है इसके अलावा भारत में लगभग 108 ऐसे शिव लिंगों की स्थापना की गई है| हालांकि मानव ने अपनी श्रद्धा और विश्वास के आधार पर हर क्षेत्र में शिवलिंग स्थापित की है| 12 ज्योतिर्लिंग की भातिक स्थिति को रेखा से मिलाकर एक शेप दिया जाए तो वह आश्चर्य जनक रूप से शंख का रूप ले लेती है|
भारत की सनातन सभ्यता की शुरुआत से शंख आकार और पिरामिड आकार की आकृतियों में देवालय के निर्माण साक्ष्य मौजूद है| इसी को देख कर बाद में अस्तित्व में आए अनेक धर्मों के देवालय भी लगभग लगभग इसी तरह की संरचनाओं में स्थापित किए गए|
भारतीय सनातन धर्म में देवालयों की विशिष्ट आकृति के पीछे मान्यता है कि इससे ईश्वरीय ऊर्जा धरती तक पहुंचती है| विभिन्न पूजा पद्धतियों में शिवलिंग व पिंडियाँ लगभग इसी तरह की आकृति में बनाई जाती है भले ही लोगों को इसका वैज्ञानिक पक्ष मालूम हो या ना हो|
कहते हैं कि देवालय मानव बस्ती से दूर हों या ऊँचे स्थान पर हों, क्योंकि यह संरचनाएं धरती की ऊर्जा को तेजी से बाहर निकालती हैं, और आकाशीय उर्जा को आकर्षित करती है इसलिए इनके आसपास रहने वाले जीव जंतुओं की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है| साधू संतो को प्रजनन क्षमता से कोई लेना देना नहीं इसलिए वे यहाँ २४ घंटे रह सकते हैं| शायद इसी वजह से भारतीय धर्म परंपरा में घर या घर में या घर के आसपास देवालय न बनाने की सलाह दी गई है| हालाकि ये सब मान्यताएं ही हैं इन पर और शोध की ज़रूरत है|