मुझे तीन चार लोगों ने संजय जोशी की कुछ अद्भुत कहानियां बताईं. एक रिटायर डीआईजी साहब अपनी कोई समस्या लेकर आए. संजय जोशी ने सीधे उस राज्य के सीएम को फोन लगा दिया. काम हो गया. एक छोटे मोटे ठेकेदार का कहीं पेमेंट अटका पड़ा था. वो संजय जोशी के पार्क दरबार में आया. संजय जी उससे मिले, समस्या सुनी और सीधे उस राज्य के प्रमुख सचिव को फोन लगा दिया. पेमेंट रिलीज हो गया.
संजय जोशी को इससे कोई मतलब नहीं है कि उनके दरबार में जो पीड़ित या दुखी शख्स आया है, वो कौन है या उसकी क्या हैसियत है. वे निर्विकार भाव से हर किसी से मिलते हैं. उनकी समस्या सुनते हैं. उनकी समस्या का निदान कराने के लिए अपना सबसे बड़ा हथियार चला देते हैं.
मुझे आश्चर्य हुआ. एक आदमी किसी पद पर नहीं है. दशक भर से ज्यादा वक्त से वह राजनीतिक परिदृश्य से ओझल है. वह इतना ताकतवर है कि लोग उसके पास समस्याएं लेकर आते हैं और वह पूरे मनोयोग से राहत दिलाने का काम करता है.
आखिर संजय जोशी कौन हैं? मुझे भी इनसे मिलना है. इनके पार्क दरबार को देखना है.
जी हां, पार्क दरबार. संजय जोशी से मिलने के लिए आपको एक पार्क में जाना होगा और वहां एक के उपर एक रखी ढेरों प्लास्टिक की कुर्सियों में से कुछ कुर्सियां निकाल कर उस पर चुपचाप बैठना होगा. चाय वाला आपको फ्री में चाय पिला जाएगा. आप जैसे ढेर सारे लोग अपनी अपनी कुर्सियों पर पार्क में अलग अलग कोनों में बैठे मिलेंगे. संजय जी आएंगे और हर बैठे शख्स से एक एक कर मिलेंगे. प्यासे को कहीं नहीं जाना है. समंदर खुद चल कर आएगा.
संजय जोशी का आवास दिल्ली के गोल मार्केट में बंगाली स्वीट्स के बगल में डाक्टर्स लेन में है. उनके फ्लैट के बगल में एक छोटा-सा सरकारी पार्क है जो संजय जोशी से मिलने का अड्डा है. यहीं वो लोग इकट्ठे होते हैं जो संजय जी से मिलना चाहते हैं.
श्यामधर तिवारी जी उर्फ सत्यमेव जयते जी ने एक दिन पहले संजय जोशी के पर्सनल असिस्टेंट को फोन कर टाइम लिया था. डेढ़ बजे. हम चार लोग डेढ़ बजे गोल मार्केट वाले पार्क दरबार में कुर्सियों पर जम चुके थे.
यहां दर्जनों लोग छोटे छोटे ग्रुप बनाकर प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठे मिले. कुछ फूल माला लेकर स्वागत के मूड में आए दिखे. ज्यादातर किसी काम से बैठ दिखे. संजय जोशी आते हैं और हर ग्रुप के साथ बैठकर उसकी समस्या सुनते हैं, प्रार्थना पत्र लेते हैं, जिस राज्य का काम होता है, उस राज्य के सर्वोच्च पदाधिकारी, वो चाहे मुख्यमंत्री या डीजीपी या मुख्य सचिव ही क्यों न हो, को फोन करते हैं.संजय जी के साथ उनकी मदद के लिए दो लोग थे. एक शख्स फोन लगाकर उन्हें फोन पकड़ा देता. दूसरा शख्स संजय जी के निर्देश को नोट करता.
हम लोगों की बारी आई. परिचय दिया. मैं भड़ास वाला यशवंत. सबने ख़ुद को बताया. संजय जी बोले- समस्या बताइए! हमने कहा- कुछ नहीं!
हम लोग तो सिर्फ पार्क दरबार देखने गए थे और संजय जोशी नामक उस शख्स को प्रणाम करने गए थे जो बिना किसी पद पर होते हुए भी निष्काम भाव से अजनबी पीड़ितों के दुख को कम करने का काम कर रहा था. संजय जी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया. हम सबने परिचय दिया. उन्होंने चाय के बारे में पूछा. हमने बताया चाय पी चुके, एक बंदा सबको चाय पिला गया. संजय जोशी जी प्रणाम कर अगले ग्रुप की तरफ बढ़ गए. कुछ देर बाद वो वाशरूम के लिए अपने फ्लैट की ओर निकलने लगे तो मेरे साथ के लोगों ने उनसे फोटो का आग्रह किया. उन्होंने हंसी खुशी फोटो उतरवाया.
बताया गया कि पिछले दिनों संजय जोशी के नया भाजपा अध्यक्ष बनने की चर्चा चल पड़ी तो अचानक उनके आवास और इस पार्क की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी.
संजय जोशी हम लोगों को एक खुली किताब की तरह दिखे. कहने वाले कहते हैं कि संजय जोशी बेहद रहस्यमय शख्स हैं. वहीं कुछ का कहना है कि वो विषपायी महादेव की तरह हैं जिसने जमाने भर का गरल अपने अंदर उतार रखा है.
राजनीति को जानने समझने वाले कहते हैं कि संजय जोशी को गुजराती गैंग ने सियासत से किनारे लगाने के लिए ढेरों साजिशें रचीं जिसमें कुछ कामयाब भी हुईं.
वहीं उम्मीदों का सिरा थामे संजय जोशी के कुछ समर्थक बताते हैं कि प्रकृति को जो क्रिया प्रतिक्रिया का नियम है, वह सच है और हर एक के जीवन में भी ये सच साबित होता है. संजय जोशी जी के सिसायी करियर का वध जिन लोगों ने किया, उनकी सियासत खत्म होने का वक्त आ चुका है. संजय जोशी जी की मुख्यधारा में वापसी में अब देर नहीं है. बस एक उचित वक्त का इंतजार है.
वक्त. समय का पहिया तो चलता ही रहता है. कोई इससे कुचलता है तो कोई इस पहिये पर सजे रथ पर संवार होकर अपने जहां का खुदा बन जाता है. संजय जोशी ने वक्त को अब थाम लिया है. समय का पहिया रुक कर अब दिशा बदल रहा है. वो रथ के सारथी बनने वाले हैं. संजय जोशी के लाखों नहीं बल्कि करोड़ों चाहने वाले हैं. हरिद्वार से लेकर रामेश्वरम तक. एक तूफान को बस उठने का इंतजार है. गोल मार्केट के पार्क दरबार की दुवाओं से उठी गोल गोल हवाएं चक्रवाती तूफान का रूप कब अख्तियार करती हैं, ये बस देखना होगा. सबके दिन आते हैं. संजय जोशी के भी दिन अब बहुत जल्दी आएंगे, ऐसा माना जा रहा है. आमीन.
गोल मार्केट जाएं और बंगाली की दुकान में रसोगुल्ला न खाएं, ये कैसे हो सकता है. यहीं बैठे सोचता रहा कि संजय जोशी नामक ये आदमी किस मिट्टी का बना है जो न खुद का कोई प्रचार करता है, न कोई बयान देता है, न कहीं टीवी पर आता है, न कभी पब्लिक डोमेन में सक्रिय दिखता है, फिर भी इसके यहां लोग प्रार्थना पत्र लेकर आते हैं और ये सबसे मिलकर उनका दुख दूर करता है.
मैंने ये बात जुबां पर ला दी तो मेरे साथ गए कन्हैया शुक्ला बोल उठे- “भइया कुछ लोगों में ईश्वरीय ताकत भी होती है. हलाहल पीकर संजय जोशी का व्यक्तित्व एक समय बाद शिवत्व से भर उठा है. वो आदमी लोक कल्याण के लिए आया है और वही काम कर रहा है. वो पद पर हो या न हो, कोई फरक नहीं पड़ता.
सही मायने में सच्चे नेता ऐसा ही होते हैं क्योंकि नेता वही जो समाज से सरोकार रखे, पीड़ित से सीधे कनेक्ट हो. संजय जी यही काम कर रहे हैं. देखना, ये आदमी एक दिन शिखर पर भी बैठा मिलेगा, तभी ऐसे ही सच्चे मन से आम लोगों के लिए काम करता रहेगा. तब भले न निजी रूप से सबसे कनेक्ट हो, वह नीतिगत निर्णयों में अपनी छाप छोड़ेगा.”
“हूं” कहकर मैं अपने मोबाइल में ओला बुक करने लगा, नोएडा वापसी के लिए, सोचते हुए, ईश्वर ने क्या दुनिया बनाई है. पद प्रतिष्ठा नाम दाम सुख दुख के बंटवारे का कोई पैरामीटर नहीं समझ सकता. कोई बहुत बड़ा है तो क्यों है और कोई बहुत छोटा है तो क्यों है, ये समझ नहीं आता. इन्हीं नासमझ मन:स्थिति में सामने आकर खड़ी हुई टैक्सी में धम्म से जाकर बैठ गया जहां पहले से ही गाना चल रहा था- अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म.…
यशवन्त सिंह