जब किरदार से ज्यादा मशहूर हुईं उनकी बिंदी...मिलेनियल्स के माथे पर फिर चमकेगी बड़ी लाल बिंदी


स्टोरी हाइलाइट्स

भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परंपरा में बिंदी का एक अहम स्थान है, महिलाएं कुछ खास कारणों से बिंदी लगाती रही है, और पुरुष टीका|बिंदी और टीका अब फैशन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गए हैं| अलग लुक के लिए बिंदी लगाने का अंदाज़ हर दशक में कुछ बदल जाता है,  एक दौर ऐसा आता है जब पुराना फैशन फिर वापस आ जाता है, कभी बिंदी छोटी हो जाती है, तो कभी बहुत बड़ी, एक बार फिर बिंदी का दौर है, लेकिन बिंदी अब फिर बड़ी हो गई है |

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ऑउटफिट के बदलते ट्रेंड के कारण कई भारतीय महिलाओं के माथे से बिंदी गायब होने लगी। लेकिन एक बार फिर बिंदी नए अंदाज में बॉलीवुड के जरिए भारतीय महिलाओं के माथे पर बड़े आकार में लाल रंग में चमकने जा रही है, हाल ही में एक फोटोशूट में कृति सेनन ने राजेश प्रताप सिंह के ट्रेडिशनल-मॉडर्न फ्यूज़न आउटफिट के साथ माथे पर बड़ी लाल बिंदी सजाई जो ब्यूटी क्रिटिक्स, एक्सपर्ट्स और फैशनिस्टाज़ के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। इनका मानना है कि ग्लिटर और शिमर बिंदियों की भीड़ में अब पारंपरिक बड़ी लाल बिंदी चमकेगी।

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अब बिंदी परंपरा से हटकर फैशन का स्टेटमेंट बन गई है, बिंदी को जहाँ एक ओर सुहाग का प्रतीक माना जाता है वहीं दूसरी ओर इसे स्टाइल ट्रेंड माना जाता हैं। ट्रेडिशनल फंक्शन में आज भी बिंदी का जलवा खूब है। एक छोटी सी बिंदी आपके फेस का पूरा लुक चेंज कर देती है। जिससे आपके चेहरे को मिलती है एक अलग पहचान। और ये पहचान ही आपको सबसे अलग दिखाती है |

फेमस हस्तियों का स्टाइल मंत्र रहा है बिंदी

जब सुधा चंद्रन ने "कहीं किसी रोज़' में रमोला सिकंद का किरदार निभाया तो उनसे ज्यादा उनकी बिंदियों की चर्चा रहती थी। ऐसे ही धारावाहिक "कसौटी जिंदगी की' में उर्वशी ढोलकिया ने जब कमोलिका का किरदार निभाया, तो उनकी बिंदियां खूब मशहूर हुई थीं। फिल्म "पीकू' में दीपिका पादुकोण की साधारण गोल बिंदियां खूब पसंद की गईं। पीकू लॉन्ग और शॉर्ट कुर्ता विद पलाजो और स्टोल पर पारंपरिक गोल बिंदियां लगाती थी।

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देश के बिंदी मैन्युफैक्चरर्स बताते हैं कि वे टीवी सीरियल्स या लाइफस्टाइल मैगजीन देखकर ही बिंदी के डिजाइन, रंग और पैटर्न तय करते हैं। वे मानते हैं कि अब वेस्टर्न और फ्यूज़न ड्रेस पर बिंदी लगाने का ट्रेंड बढ़ेगा। युवा अभिनेत्री कृति सेनन ने वेस्टर्न फ्यूज़न ड्रेस पर बड़ी लाल बिंदी लगाकर एक शुरुआत की है।

उषा उत्थुप, डॉली ठाकुर, वृंदा करात और स्व. सुषमा स्वराज जैसी हस्तियों का स्टाइल मंत्र रही है बिंदी,  इन हस्तियों के फेस पर गोल बिंदी इनको एक अलग ही पहचान देती रही  हैं। वही दूसरी तरफ इला अरुण, किरण खेर, सुधा चंद्रन, रेखा, उर्वशी ढोलकिया और मल्लिका साराभाई जैसी हस्तियों ने डिजाइनर बिंदियों से नए-नए एक्सपेरिमेंट करके खास पहचान बनाई । इनकी बिंदियों का स्टाइल इतना पापुलर हुआ था की सभी इनका स्टाइल कॉपी करने लगे थे।

 

बिंदी संस्कृत शब्द "बिंदु' से निकला है जिसका अर्थ है- कण या बूंद। बिंदी के और भी नाम हैं- कुमकुम, सिंदूर, टीप, टिकली और बोट्‌टू। कुमकुम-चंदन की बिंदी पुरुष भी लगाते थे। "अज्न' चक्र पर इसे लगाया जाता है जिसे बु्द्धि का गढ़ भी कहते हैं। लाल बिंदी विवाह का प्रतीक है। हालांकि अब ब्यूटी एसेसरी ज्यादा है। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मॉरिशस में बिंदी लगाई जाती है। फेस के अनुसार बिंदी का चुनाव कैसे ?

राउंड शेप फेस- ऐसे फेस वाली महिलाएं हमेशा लंबी बिंदी ही लगाए। इससे आपके फेस की गोलाई छिप जाएगी और फेस लंबा नज़र आएगा। अगर शादी, पार्टी में कुंदन, मीनाकारी आदि की डिजाइनर बिंदी लगा रही है तब भी बिंदी की लंबाई के साथ इस बात का ख्याल रखे कि बिंदी में हैवी वर्क न हो।

ओवल शेप फेस- ऐसे फेस वाली महिलाओं पर हर तरह की बिंदी अच्छी लगती है। आप तरह तरह के एक्सपेरिमेंट कर सकती है।

स्कवायर शेप फेस- ऐसे फेस वाली महिलाएं तोड़ी चौड़ी व मीडियम लेंथ वाली बिंदी लगाए। ये बिंदी आपके फेस को सॉफ्ट लुक देगी आप गोल या अंडाकार बिंदी भी लगा सकती है।

 

बिंदी के स्टाइल अपडेट्स टिप्स-

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  • यदि आपके आईब्रोज के बीच में गैप कम है, साथ ही आपका माथा चौड़ा है तो आप पतली लंबी बिंदी लगाएं।

  • यदि माथा चोटा है तो छोटी गोल बिंदी लगाय।

  • यंग दिखने के लिए छोटी और डेलिकेट बिंदी लगाय।

 

बिंदी लगाने के ये होते हैं फायदे

माथे पर बिंदी लगाने से ये शरीर के ऊपरी हिस्से को शांत बनाए रखने में मदद करती है. माथे पर ऐसी कोशिकाएं होती हैं जो बिंदी लगाने से रिलैक्स हो जाती हैं और अच्छी नींद आती है। इस प्वाइंट को मसाज करने पर नाक के आस-पास ब्लड सर्कुलेशन अच्छी तरह से होने लगता है, जिससे बहुत राहत मिलती हैं।

दोनों आइब्रो के बीच जिस जगह पर बिंदी लगाई जाती हैं उसी जगह पर आकर शरीर की सभी नसें एक साथ मिलती हैं। बिंदी लगानेवाली इस जगह को अग्नि चक्र के नाम से भी जाना जाता है।

बिंदी लगाने से टेंशन और तनाव से भी राहत मिलती है और अच्छी नींद आती है।

माथे के बीचों-बीच जिस जगह पर बिंदी लगाई जाती है। उस जगह की नसें और आंखों की नसों का गहरा कनेक्शन होता है। बिंदी आखों की नसों को मजबूतबनाने में मदद करती है। इतना ही नहीं बिंदी लगाने से कानों के भीतर के मसल्स भी मजबूत और हेल्दी होते है।

अगर आपके चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी हैं तो फिर बिंदी लगाना शुरू कर दीजिए क्योंकि बिंदी लगाने से चेहरे पर असमय पड़ने वाली झुर्रियों से भी राहत मिलती है।

बिंदी लगाने से एजिंग की प्रोसेस स्लो हो जाती है। क्योंकि बिंदी त्वचा की कोशिकाओं को मजबूत करती है। जिससे रिंकल्स आने की प्रोसेस स्लो हो जाती है।

जो महिलाएं अभी तक बिंदी लगाने से बचती रही है वो महिलाएं माथे पर बिंदीलगाने के बारे में जानकर हर रोज बिंदी लगाना शुरू कर देंगी तो फिर देर किस बात की बिंदियो पर एक्सपेरिमेंट कर ही डालिये।

लड़कियों के माथे पर बिंदी लगाने का शास्त्रीय मत वही है जो पुरुषों के द्वारा माथे पर चंदन और सिंदूर लगाने का कारण माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार कुंवारी कन्याएं नवदुर्गा का प्रतीक होती है और विवाहित लड़कियां लक्ष्मी और गौरी का स्वरुप मानी जाती है। यह दोनों देवियां चिर सुहाग का प्रतीक मानी जाती है।

इसलिए इनके प्रतीक चिन्ह के रुप में विवाहित महिलाओं द्वारा लाल बिंदी या कुमकुम की बिंदी लगाने का विधान है। माना जाता है कि इससे सौभाग्य और समृद्घि बढ़ती है। पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ता है।

 

बिंदी ज्योतिष और विज्ञान

जबकि ज्योतिष और विज्ञान की दृष्टि से यह माना जाता है कि स्त्रियों में शुक्र और चन्द्र का प्रभाव अधिक होता है। इससे इनका मन अधिक चंचल होता है।

माथे पर जहां बिंदी लगाई जाती है वहां आज्ञा चक्र होता है। आज्ञा चक्र के संतुलित रहने से चंचलता में कमी आती है। बिंदी और कुमकुम लगाने से यह चक्र नियंत्रित होता है। इस कारण से भी लड़कियों के माथे पर बिंदी लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

प्राचीन काल में बिंदी शादीशुदी महिलाओं का सुहाग चिन्ह हुआ करती थी ।महिलाओं की बिंदी देखकर प्रांत की पहचान हो जाती थी। बिंदी दुल्हन के नए परिवार में दाखिल होने का पुख्ता प्रमाण हुआ करती थी । बिंदी को कुमकुम कहा जाता था, जो हल्दी और चूने से तैयार होता था। गर्मियों में शरीर को ठंडक पहुंचाने वाली चीजों से बिंदी बनाई जाती थी। चंदन, केसर और मस्क के पेस्ट से बिंदी के अलग-अलग डिजाइन तैयार किए जाते थे। इन्हें "पत्रावली' कहा जाता था। चंदन, कुमकुम और राख से बने पेस्ट के डिजाइन जाति के अनुसार बनाए जाते थे। इसे पुरुष भी लगाते थे।दुल्हन के माथे पर चूना और सिंदूर से चांद-सूरज के डिजाइन ही बनाए जाते थे।

 

इस तरह बदलती चली गई बिंदी

1930-40 शहरी महिलाओं ने बहुत ही छोटी बिंदी लगाना शुरू किया। इसे माथे पर किस जगह लगाया जाए ये लगाने वाले पर निर्भर करता था।

1950-60 "तिलक' बिंदी को मांग टीके की तरह भी लगाया जाता था। यह डिजाइन जवान महिलाएं खूब लगाती थीं।

1970-80 सादी गोल बिंदी का आगमन हुआ। यह पाउडर और लिक्विड रूप में आती थी और इसे स्टिक की मदद से लगाया जाता था।

1990 फेल्ट डेकोरेटिव बिंदी आ चुकी थी। शुरुआती सदी की लाक बिंदी और आज की फेल्ट बिंदी के बीच प्लास्टिक की स्टिक-ऑन बिंदियां भी आने लगी थीं। ये थोड़े कड़क प्लास्टिक से बनती थीं, बेस स्मूद होता था और एक से ज्यादा रंगों में मिलती थीं। आइब्रो के बीच कई ऐसी नर्व्स होती हैं जो सीधे आंखों के मसल्स से जुड़ती हैं। बिंदी लगाने से आंखों की रोशनी में सुधार होता है।