अगम देश कहां है? जहाँ केवल पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं उनकी अंगना ब्रह्मात्माएं ही रहती हैं
स्टोरी हाइलाइट्स
अगम देश कहां है?अगम का तात्पर्य है- ऐसा दुर्गम स्थान जहां पहुंचा नहीं जा सके तथा उस स्थान को जानना बहुत ही कठिन हो। अगम देश एक ऐसा देश है..
अगम देश कहां है? जहाँ केवल पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं उनकी अंगना ब्रह्मात्माएं ही रहती हैं
अगम देश कहां है?
अगम का तात्पर्य है- ऐसा दुर्गम स्थान जहां पहुंचा नहीं जा सके तथा उस स्थान को जानना बहुत ही कठिन हो। अगम देश एक ऐसा देश है जहां कोई दूसरा प्रवेश नहीं कर सकता है वहां केवल पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं उनकी अंगना ब्रह्मात्माएं ही रहती हैं।
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संत एवं शास्त्र इन्हीं ब्रह्मात्माओं को सुहागिन सुरता कहते हैं। इनका दिव्य शरीर होता है तथा ये सखी रूप में रहती हैं। वहां पुरुष रूप में तो केवल पूर्णब्रह्म परमात्मा ही हैं। यहां काल एवं माया का प्रवेश नहीं है, इस देश का रास्ता यहां रहने वाली सुहागिन सुरताओं को ही मालूम होता है। यहां जन्म एवं मृत्यु नहीं होती है तथा किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता है। यहां हमेशा आनंद की प्रेम लीला होती रहती हैं।
"सूरत सुहागन तू मेरी प्यारी, अगम देश की राह बता।
सतगुरु मिला भरम भय भाग्या, भवसागर से दिया चिता।।"
उपरोक्त पद में संत कहते हैं कि इस देश का रास्ता यहां रहने वाली सुहागिन सुरताऐं ही बता सकती हैं। यही इस देश में जाने की अधिकारी हैं। यह देश भवसागर के पार है एवं इस भवसागर को ही शून्य अथवा नींद कहा गया है जिसमें भ्रम रुपी स्वप्न के संसार की रचना होती रहती है। सद्गुरु ही इसके संबंध में ज्ञान देकर भय को भगाते हैं।
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इस मोह जल के संबंध में कबीर जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
"पाहन फोरि गंग एक निकरी, चहुँदिश पानी पानी।
तेहि पानी दुइ पर्वत बूङे, दरिया लहर समानी।। "
जब सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हुई थी तब दो अखंड पर्वत थे पहला अक्षर पुरुष तथा दूसरा नि:अक्षर पुरुष। जिस प्रकार गंगा नदी का उद्गम स्थान पर्वत है, उसी प्रकार सृष्टि की रचना हेतु अक्षर रूपी पर्वत से मोहजल रूपी सागर की धारा निकलती हैं, जिसमे स्वप्निक संसार की रचना होती है और इसी मोहजल ने सृष्टि के जीवो के लिए दोनों अखंड पर्वतों (अक्षर तथा नि:अक्षर) को ढक दिया। दरिया के समान अक्षर पुरुष ने लहर के समान मोह- जल रुपी माया में प्रतिबिंबित होकर इस स्वप्न की सृष्टि की रचना हेतु लहर में समा गया।
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यह नि:अक्षर का देश ही अगम देश है जहां सुहागिन सुरताऐं रहती हैं। इस अगम देश में, भवसागर रुपी शून्य(नींद) में उत्पन्न स्वप्न की सृष्टि के जीव, नहीं जा सकते हैं। स्वप्न की सृष्टि तथा अगम देश के बीच में भवसागर रुपी शून्य(नींद) का पर्दा है।
यह भवसागर रुपी शून्य कहां है? यह शून्य, सृष्टि की रचना करने वाले अक्षर ब्रह्म के चित्त में है जिसमें सारी सृष्टि बनती और बिगड़ती रहती है। अक्षर तथा नि:अक्षर (अक्षरातीत) ब्रह्म एक ही है अलग नहीं है अक्षर ब्रह्म बालस्वरूप तथा नि:अक्षर ब्रह्म किशोर स्वरूप है। इन दोनों का धाम अलग-अलग, अक्षर धाम एवं परम धाम है।
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पूर्णब्रह्म परमात्मा सच्चिदानंद हैं, उनके सत अंग से बाल स्वरूप अक्षर ब्रह्म है जो सृष्टि की रचना करते हैं और मिटा देते हैं। चित्त से चेतन वे स्वयं अक्षरातीत(नि:अक्षर) हैं और आनंद से उनकी अंगना सुहागिन सुरताएं हैं।
अतः यह समस्त स्वप्न की सृष्टि पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत(नि:अक्षर) के आदेश से अक्षर ब्रह्म के चित्त के अंदर बनती हैं। यदि सब कुछ अगम देश के अंदर ही है फिर उस अगम देश का स्थान किस प्रकार बतलाया जा सकता है।
यदि किसी मां के पेट में बच्चा हो, बच्चे के पेट में एक जोंख हो तथा उस जोंख के पेट में एक कीड़ा हो, तो वह कीड़ा मां को किस प्रकार जान सकता है। उस कीड़े से यह पूछा जाए कि मां कहां है? तो वह किस प्रकार उत्तर दे सकता है? वह तो स्वयं मां के पेट के अंदर है। इसी प्रकार यह स्वप्न का जीव किस प्रकार बता सकता है कि अगम देश कहां स्थित है?
बजरंग लाल शर्मा