कौन थे महात्मा गांधी के वो आध्यात्मिक गुरु, जिन्होंने दिखाया था उन्हें रास्ता महात्मा गांधी को केरल (Kerala) में एक महात्मा मिले थे, वो ऐसे गुरु थे, जिन्होंने गांधीजी को उस रास्ते पर डाला, जिसके बाद वो गांधी से महात्मा बन गए. छुआछूत, सत्याग्रह और अध्यात्म पर गांधीजी के विचार कैसे बने थे? दो महात्माओं की मुलाकात जब होती है, तब क्या कमाल होता है? अपने जीवन में पांच बार केरल की यात्रा करने वाले महात्मा गांधी ने शिवगिरि मठ के श्री नारायण गुरु से जब मुलाकात की थी, तब दोनों के बीच जो कुछ विचार विमर्श हुआ, उसके बाद महात्मा गांधी के कई विचार और प्रखरता के साथ सामने आए. यहां तक कि नारायण गुरु को गांधीजी का आध्यात्मिक गुरु भी कहा गया. इतिहासकार रोमिला थापर की मानें तो ट्रावनकोर के हिंदू समाज में छुआछूत या अस्पृश्यता एक सामाजिक बुराई की तरह फैली हुई थी. इसी के चलते राजा के समय में उच्च जाति के हिंदुओं ने वायकोम मंदिर में कथित निचली जाति के लोगों का प्रवेश बंद कर रखा था. जब नारायण गुरु को मंदिर में जाने से रोक दिया गया था, तब छुआछूत के खिलाफ वायकोम सत्याग्रह गुरु और उनके अनुयायियों ने शुरू किया था. दूसरी तरफ, गांधीजी रौलेट एक्ट के खिलाफ और खिलाफत आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने पहले केरल पहुंच चुके थे. इस बार वायकोम सत्याग्रह से जुड़ना भी गांधीजी की केरल यात्रा का बड़ा मकसद था. इस यात्रा के दौरान मुलाकातों और भाषणों के दौरान गांधीजी ने रूढ़िवादी नेताओं और छुआछूत जैसी परंपराओं का खुलकर विरोध किया. तिरुअनंतपुरम में सेतुलक्ष्मीबाई से मुलाकात के बाद गांधीजी ने शिवगिरि आश्रम का रुख किया क्योंकि सेतुलक्ष्मी ने भी नारायण गुरु की कोशिशों को लेकर बहुत आशा जताई थी.
नारायण गुरु से हुई ऐतिहासिक मुलाकात गांधीजी के स्वागत के लिए नारायण गुरु खुद आश्रम पहुंचे और औपचारिक बातचीत के बाद दोनों के बीच विचार विमर्श हुआ. गुरु को अंग्रेज़ी व हिन्दी न आने और गांधीजी को संस्कृत, तमिल व मलयालम भाषा का ज्ञान न होने के कारण सी राजगोपालाचारी, ईवी रामस्वामी नायकर, रामदास गांधी, महादेव देसाई की मौजूदगी में एडवोकेट एन कुमारन ने गुरु और गांधी के बीच अनूदक की भूमिका निभाई थी. उस बातचीत के कुछ खास अंश इस तरह थे : गांधी : क्या छुआछूत को लेकर हिंदू ग्रंथों में कोई उल्लेख है? गुरु : नहीं. गांधी : क्या स्वामीजी को लगता है कि इस आंदोलन में कुछ और जोड़ा या बदलना चाहिए? गुरु : मुझे लगता है सब ठीक चल रहा है. फिलहाल कोई बदलाव ज़रूरी नहीं है. गांधी : छुआछूत के अलावा पिछड़ी जातियों के सामने जो समस्याएं हैं, उनके सुधार के बारे में मैं आपके विचार जानना चाहता हूं. गुरु : उन्हें शिक्षा और संपत्ति मिलना चाहिए. मैं ये नहीं कहता कि अंतर्जातीय विवाह और अंतर्जातीय समारोह में सहभोज जैसा कोई कदम तुरंत उठाया जाए लेकिन उन्हें तरक्की के और मौके दूसरों की तरह ही मिलना चाहिए. गांधी : कुछ लोग कहते हैं कि अहिंसक सत्याग्रह बेकार है और अधिकारों के लिए बल प्रयोग ज़रूरी है. आपका क्या मानना है और क्या हिंदू ग्रंथों में बल प्रयोग का समर्थन है? गुरु : बल प्रयोग मेरी नज़र में अच्छा नहीं है. हालांकि पुराणों में बल प्रयोग को ज़रूरी कहा गया है लेकिन केवल राजाओं के लिए. आम लोगों के लिए इसका कोई औचित्य नहीं है. गांधी : क्या आध्यात्मिक आज़ादी या उत्कर्ष के लिए हिंदू धर्म ही समुचित है? गुरु : दूसरे धर्मों में भी आध्यात्मिक आज़ादी के लिए तरीके हैं... हिंदू धर्म में रहते हुए ही आध्यात्मिक आज़ादी और उत्कर्ष संभव है लेकिन लोग भौतिकवादी आज़ादी की इच्छा ज़्यादा करते हैं... आध्यात्मिक आज़ादी के लिए धर्म परिवर्तन की कोई ज़रूरत नहीं है. गांधी : क्या छुआछूत पिछड़ी जातियों के बीच भी है? क्या आपके मंदिर और आश्रम में सबको आने की इजाज़त है? गुरु : बेशक. सबको इजाज़त है. पुलायार और पारियार जैसे समुदायों के बच्चे यहां रहते और पढ़ते हैं, उसी तरह जैसे दूसरे समुदायों के. दूसरों जैसे ही वो भी प्रार्थनाओं में हिस्सा लेते हैं. गांधी : ये बेहद खुशी की बात है. फिर बदला था कानून इस मुलाकात के बाद गांधीजी ने नारायण गुरु के आंदोलन यानी वायकोम सत्याग्रह के समर्थन में प्रचार किया. धीरे धीरे ये आंदोलन बढ़ा और करीब 10 साल बाद 1936 में ट्रावनकोर के राजा ने वायकोम मंदिर सहित रास्तों और मंदिरों में पिछड़ी या निचली जातियों के लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध के कानून को समाप्त कर सबके लिए प्रवेश की व्यवस्था की. इस फैसले का ज़ोरदार स्वागत हुआ लेकिन नारायण गुरु 1928 में गुज़र चुके थे. फिर भी, इस फैसले के स्वागत के लिए 1937 में गांधीजी ने केरल की अपनी अंतिम यात्रा की थी और गुरु को याद किया था. वायकोम सत्याग्रह के साथ ही गुरु ने 1923 में सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन करवाया था.
नारायण गुरु क्यों हैं अविस्मरणीय? एक किसान परिवार में पैदा हुए नारायण गुरु ने गुरुकुल में शिक्षा लेने के बाद समाज की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाए थे. उन दिनों केरल में ब्राह्मण समुदाय पारियारों, आदिवासियों और पुलायार जैसे पिछड़े समुदायों के साथ क्रूर और शोषण वाला बर्ताव किया करता था. जाति प्रथा के खिलाफ नारायण गुरु ने बिगुल फूंका और सत्य, नीति, दया और प्रेम के संदेश दिए. उन्होंने संपूर्ण मानवता के लिए सौहार्द्र की बात की. उन्होंने संस्कृत में जो अनुकंपादशकम ग्रंथ रचा, उसमें कृष्ण, बुद्ध, आदि शंकर के साथ ही ईसा मसीह के संदेशों का भी विस्तार किया. आलवाय अद्वैत आश्रम की स्थापना और वायकोम सत्याग्रह के साथ ही गुरु ने 1923 में सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन करवाया था, जो भारत में इस तरह का पहला सम्मेलन था. 'एक जाति, एक धर्म और सबका ईश्वर एक' जैसा विचार उन्होंने दिया जो आज भी केरल में एक कहावत की तरह याद किया जाता है. साथ ही, उन्होंने शिवगिरि को तीर्थ के रूप में विकसित करने की शुरूआत भी की थी.