क्यों है महान दार्शनिक सुकरात(Sukrat/Socrates) का जीवन ?


स्टोरी हाइलाइट्स

सुकरात(sukrat/socrates) यूनान के एक महान दार्शनिक थे | उन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक भी कहा जाता है | पश्चिमी ...सुकरात का जन्म 46.......sukrat | socrates

महान दार्शनिक सुकरात(Sukrat/Socrates) की जीवनी | ( SOCRATES AS A TRUTH SEEKER)
Sukrat
सुकरात(sukrat/socrates)  यूनान के एक महान दार्शनिक थे | उन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक भी कहा जाता है | पश्चिमी सभ्यता के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है | सुकरात(sukrat/socrates)  का जन्म 469 ईस्वी पूर्व एथेंस में हुआ था | उनके पिता एक मूर्तिकार थे | सुकरात ने भी अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में पैतृक व्यवसाय को ही अपनाया था | अन्य लोगो की तरह उन्हों मातृभाषा , यूनानी कविता , गणित , ज्यामिति तथा खगोल विज्ञान की पढाई की थी | उन्होंने एक पैदल सैनिक के रूप में देश के दुश्मनों के खिलाफ युद्ध में भी भाग लिया था तथा उनके दोस्तों ने उनकी बहादुरी की सराहना भी की थी |
नाम– सुकरात(sukrat/socrates) 

जन्म – 469 ई. पू.

जन्मस्थान – एथेंस

मृत्यु – 399 ई. पू.

मत्यु स्थान– एथेंस

पत्नी – मायरटन तथा जैन्थआइप

शिष्य – अरिस्टोफेनस तथा जेनोफोन, अफलातून तथा अरस्तू

कर्म भूमि  – यूनान

कर्म-क्षेत्र  –  पाश्चात्य दर्शन

नागरिकता  – ग्रीक

मृत्यु कारण – सुकरात(sukrat/socrates)  पर देवताओं की उपेक्षा करने तथा युवाओं का भड़काने का आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया गया, जिसके फलस्वरूप उसे विष का प्याला पीने के लिए विवश किया गया।

अन्य जानकारी – सुकरात(sukrat/socrates)  एथेंस के बहुत ही ग़रीब घर में पैदा हुआ था। वह सेना की नौकरी में चला गया था तथा पैटीडिया के युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ा था। ज्ञान का संग्रह तथा प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे।

जीवनी एक झलक
BIOGRAPHY A GLANCE
सुकरात(sukrat/socrates)  का जन्म ग्रीस के एक प्राचीन नगर एथेन्स में ईसा से 470 साल पहले हुआ. उन्होंने अपनी शिक्षा को कभी भी पुस्तक का रूप नहीं दिया. उनकी ज्यादातर बातें उनके दो महान शिष्य प्लेटो तथा जेनोफोन के माध्य से ही मिलती है. उनके विचार पाश्चात्य दर्शन तथा तर्क शास्त्र के नीवं माने जाते हैं. उनके विचारों से जनता इतना अधिक प्रभावित थी की एथेन्स का राजतंत्र उनसे भय खाने लगा तथा 399 ईसा पूर्व उन्हें जहर देकर उनकी हत्या कर दी गई. उन्हें अपने हत्या की जानकारी पहले से मिल गई थी लेकिन उन्होंने भागने की जगह दुष्ट शक्तियों का सामना करते हुए मरना ज्यादा उचित समझा.

सुकरात (sukrat/socrates)  एक विख्यात यूनानी दार्शनिक था। उसके बारे में कहा जाता है कि वह एक कुरूप व्यक्ति था तथा बोलता अधिक था। सुकरात को सूफ़ियों की भाँति मौलिक शिक्षा तथा आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। वस्तुत: उसके समसामयिक भी उसे सूफ़ी समझते थे। सूफ़ियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था तथा उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। बुद्ध की भाँति सुकरात ने कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा। तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा तथा नास्तिक होने का झूठा दोष सुकरात पर लगाया गया |
प्रारंभिक जीवन (EARLY  YEARS)
सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व रोम के एक नगर एथेन्स में हुआ. उनके बचपन के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती है. उनके शिष्यों ने उनके जीवन की जगह उनके विचारों को अपने पुस्तकों में ज्यादा जगह दी है इसलिए उनके जीवन के सम्बन्ध में ज्यादातर जो कहानियां प्रचलित है, वे या तो उनके मृत्यु के बहुत बाद में बनाई गई या फिर उनकी महानता को स्थापित करने के लिए किवदंतियों के तौर पर जनमानस में अंकित हो गई.

सुकरात के पिता का नाम सोफरोनिसकस पाया गया है. उनके पिता एक शिल्पकार तथा मूर्तिकार थे. सुकरात ने भी ग्रीस में सामान्य बच्चों की तरह प्रारंभिक शिक्षा ली तथा अपने पिता की कला को ही आत्मसात करने का प्रयास किया. उनकी माता का नाम फैनरेट पाया गया है जो कि एक दाई का काम करती थीं.

इस बारे में कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि सुकरात की एक मूर्तिकार से दार्शनिक तक की यात्रा किस तरह सम्पन्न हुई. सुकरात के दोनों शिष्य अरिस्टोफेनस तथा जेनोफोन ने इस बात का जिक्र किया है कि सुकरात पढ़ाने के लिए अपने शिष्यों से पैसा लिया करते थे जबकि प्लेटो इस बात से साफ इंकार करते थे कि सुकरात अपनी शिक्षा के लिए किसी से किसी भी तरह का कोई शुल्क वसूलते थे. सुकरात का सारा जीवन घोर गरीबी में बीता.
मूर्तिकला में जब Socrates सुकरात का मन नही रमा तो उन्होंने स्कूल खोल दिया | यहा पर युवा लोग अपने मन में उपजे सवालों के हल के लिए सुकरात के पास आते थे | सुकरात के जीवनकाल में एथेंस में भारी राजनितिक उथल पुथल मची हुए थी क्योंकि देश को पेलोपोनेशियन युद्ध में भारी हार से अपमानित होना पड़ा था | इससे लोगो में राष्ट्रीयता की भावना तथा वफादारी घर कर गयी थी लेकिन Socrates सुकरात देशवासियों की परीक्षा लेते थे | वो किसी सम्प्रदाय विशेष के पक्ष के खिलाफ थे तथा स्वयं को विश्व का नागरिक मानते थे |

Socrates सुकरात अक्सर रस्ते चलते लोगो से सवाल करते थे तथा उनके समक्ष आडम्बरो ,रुढियो तथा राजनेताओ की आलोचना करते थे | इससे कई लोग उनके दुश्मन हो गये थे | शक के उस माहौल में कई लोगो ने उन्हें शत्रु का भेदिया तो कई ने देशद्रोही तक कह दिया था | आखिर युवाओं को गुमराह करने के इल्जाम में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया |
बुद्ध की भाँति सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता तथा मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् तथा ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह तथा प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून तथा अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद तथा दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद।
सुकरात के तीन छोटे प्रश्न
एक बार वे बाजार से गुजर रहे थे तो रास्ते में उनकी मुलाकात एक परिचित व्यक्ति से हुई। उन सज्जन ने सुकरात को रोककर कुछ बताना शुरू किया। वह कहने लगा कि 'क्या आप जानते हैं कि कल आपका मित्र आपके बारे में क्या कह रहा था?'

सुकरात ने उस व्यक्ति की बात को वहीं रोकते हुए कहा - सुनो, भले व्यक्ति। मेरे मित्र ने मेरे बारे में क्या कहा यह बताने से पहले तुम मेरे तीन छोटे प्रश्नों का उत्तर दो। उस व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा - 'तीन छोटे प्रश्न'।

सुकरात ने कहा - हाँ, तीन छोटे प्रश्न।

पहला प्रश्न तो यह कि क्या तुम मुझे जो कुछ भी बताने जा रहे हो वह पूरी तरह सही है? उस आदमी ने जवाब दिया - 'नहीं, मैंने अभी-अभी यह बात सुनी तथा ...।'

सुकरात ने कहा- कोई बात नहीं, इसका मतलब यह कि तुम्हें नहीं पता कि तुम जो कहने जा रहे हो वह सच है या नहीं।'

अब मेरे दूसरे प्रश्न का जवाब दो कि 'क्या जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो वह मेरे लिए अच्छा है?' आदमी ने तुरंत कहा - नहीं, बल्कि इसका ठीक उल्टा है। सुकरात बोले - ठीक है।

अब मेरे आखिरी प्रश्न का जवाब दो कि जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो वह मेरे किसी काम का है भी या नहीं। व्यक्ति बोला - नहीं, उस बात में आपके काम आने जैसा तो कुछ भी नहीं है। तीनों प्रश्न पूछने के बाद सुकरात बोले - 'ऐसी बात जो सच नहीं है, जिसमें मेरे बारे में कुछ भी अच्छा नहीं है तथा जिसकी मेरे लिए कोई उपयोगिता नहीं है, उसे सुनने से क्या फायदा। तथा सुनो, ऐसी बातें करने से भी क्या फायदा।
सुकरात का वैवाहिक जीवन ( MARRIED LIFESTYLES OF SOCRATES )
सुकरात के दो विवाह हुए थे। उसकी पहली पत्नी का नाम 'मायरटन' था। उससे सुकरात को दो पुत्र प्राप्त हुए थे। जबकि दूसरी पत्नी का नाम था 'जैन्थआइप'। इसने एक पुत्र को जन्म दिया था। जिनसे उन्हें तीन बेटे लैंपक्राल्स, सोफ्रोनिसस तथा मेनेक्सेनस का जन्म हुआ. एन्थिपे का वर्णन एक बुरी पत्नी के तौर पर मिलता है जो सुकरात से कभी खुश नहीं रहा करती थी तथा उन्हें हमेशा बुरा-भला कहा करती थी.

वैवाहिक जीवन पर सुकरात की एक कथा बहुत प्रसिद्ध है. एक बार सुकरात का एक शिष्य उनसे पूछने आया कि क्या उसे विवाह करना चाहिए या नहीं? सुकरात ने उत्तर देते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को विवाह अवश्य करना चाहिए क्योंकि अगर आपको अच्छी पत्नी मिलती है तो आपका जीवन सुखमय हो जाता है तथा कहीं आपको बुरी पत्नी मिलती है तो आप सुकरात जैसे दार्शनिक बन जाएंगे. दोनो ही सूरतों में आपका फायदा ही होने वाला है.
सुकरात पर मुक़दमा
जब सुकरात पर मुक़दमा चल रहा था, तब उसने अपना वकील करने से मना कर दिया तथा कहा कि "एक व्यवसायी वकील पुरुषत्व को व्यक्त नहीं कर सकता है।" सुकरात ने अदालत में कहा- "मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने एथेंसवासियों की सेवा में लगा दिया। मेरा उद्देश्य केवल अपने साथी नागरिकों को सुखी बनाना है। यह कार्य मैंने परमात्मा के आदेशानुसार अपने कर्तव्य के रूप में किया है। परमात्मा के कार्य को आप लोगों के कार्य से अधिक महत्व देता हूँ। यदि आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दें कि मैं सत्य की खोज छोड़ दूँ, तो मैं आपको धन्यवाद कहकर यह कहूंगा कि मैं परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अपने वर्तमान कार्य को अंतिम श्वास तक नहीं छोड़ सकूँगा। तुम लोग सत्य की खोज तथा अपनी आत्मा को श्रेष्ठतर बनाने की कोशिश करने के बजाय सम्पत्ति एवं सम्मान की ओर अधिक ध्यान देते हो। क्या तुम लोगों को इस पर लज्जा नहीं आती।" सुकरात ने यह भी कहा कि "मैं समाज का कल्याण करता हूँ, इसलिए मुझे खेल में विजयी होने वाले खिलाड़ी की तरह सम्मानित किया जाना चाहिए।"
सुकरात एक दार्शनिक ( SOCRATES AS A TRUTH SEEKER )
सुकरात एक दार्शनिक के तौर पर मानते थे कि विचार के माध्यम से ही समाज में सकरात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं. उन्होंने धार्मिक सिद्धांतों के बजाय मानवीय आधार पर एक नैतिक प्रणाली स्थापित करने का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि आदमी की पसंद उसकी सुख प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित होती है.

परम ज्ञान खुद को जानने से आता है. जितना ज्यादा व्यक्ति जानता है, उतनी ही उसकी क्षमता में विस्तार होता है जिससे वह तर्क करना सीखता है तथा सच्ची खुशी जीवन में ला पाता है.

सॉक्रेट्स के लिए, एथेंस एक कक्षा थी, जहां उन्होंने जीवन के ढेरों पाठ सीखें. उन्होंने राजनीतिक तथा नैतिक सत्य पर आने की मांग करते हुए, विशिष्ट तथा आम आदमी के सवाल पूछने के बारे में अपने विचार दिए। उन्होंने अपने साथी एथेनियाई लोगों से एक काव्यात्मक पद्धति में सवाल पूछे, जो सॉक्रेट्स मैथड कहलाता है.
सुकरात की मृत्यु  ( DYING OF SOCRATES )
सुकरात के विचारों से एथेन्स का राजतंत्र घबरा गया तथा उन पर देशद्रोह का इल्जाम लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चलाया गया तथा मुकदमा सुनने वाली ज्यूरी ने उन्हें 221 के मुकाबले 280 वोटों से देशद्रोह का अपराधी माना. जनमानस पूरी तरह सुकरात के साथ था. इस डर से ज्यूरी ने सीधे मृत्युदण्ड देने के बजाय जहर का प्याला पीने को कहा गया. सुकरात के दोस्तों ने गार्ड को रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लिया. उन्होंने सुकरात को इसके लिए राजी करने का प्रयास किया कि वह जहर का प्याला पीने की जगह एथेन्स छोड़कर कहीं ओर भाग जाए.

सुकरात ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह मौत से डरता नहीं था, उन्होंने महसूस किया कि निर्वासन से बेहतर है कि वह एथेंस के एक वफादार नागरिक होने की मिसाल कायम करे, जो उसके कानूनों का पालन करने के लिए तैयार है. सुकरात ने बिना किसी हिचकिचाहट के हीमलकॉक मिश्रण पिया, जो जहर का एक प्रकार है. अपने आखिरी श्वास से पहले, सोक्रेट्स ने अपनी मृत्यु को शरीर से आत्मा की रिहाई के रूप में वर्णित किया।

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