करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा निकलने के बाद चंद्रमा की पूजा करके अपना व्रत तोड़ती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि कारवा चौथ मनाने की परंपरा कब शुरू हुई और सबसे पहले करवा चौथ व्रत किसने मनाया था?
हमारे धार्मिक ग्रंथों में करवा चौथ को लेकर कई बातें और मान्यताएं हैं, आइए जानते हैं कुछ खास बातें...
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?
विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए चौथ व्रत रखती हैं। यह व्रत प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। हर विवाहित महिला को अपने पति की लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए करवा चौथ व्रत रखना चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार यह व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था।
द्रौपदी ने अर्जुन के लिए किया था करवा चौथ व्रत
महाभारत काल में जब अर्जुन तपस्या करने के लिए नीलगिरि पर्वत पर थे। उस समय द्रौपदी ने अर्जुन की रक्षा के लिए कृष्ण से मदद मांगी। तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को निर्जला व्रत रखने और शिव और पार्वती की पूजा करने के लिए कहा। इस व्रत के बाद अर्जुन सकुशल लौट आये। उसके बाद सभी विवाहित महिलाएं करवा चौथ का व्रत करने लगीं।
दूसरी मान्यता यह है कि महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों की जान बचाने के लिए भगवान कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने यह प्रतिज्ञा ली थी।
देव पत्नियों ने व्रत रखा
ऐसा कहा जाता है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध छिड़ गया, तो भगवान ब्रह्मा ने सभी देवताओं की पत्नियों को अपने पतियों की जीत के लिए व्रत रखने का सुझाव दिया, जिसके बाद करवा चौथ व्रत मनाया जाने लगा।
करवा चौथ व्रत कथा (Karva Choth katha in Hindi)
करवा चौथ की कथाएं प्रचलिए हैं, जानते हैं कुछ खास कथाओं के बारे में…
एक साहूकार के सात बेटे थे और वीरवती नाम की एक बेटी थी। करवा चौथ के दिन बेटी ने अपने मायके में आकर अपनी भाभियों के संग व्रत रखा। जब सब भोजन करने लगे तो वीरवती के भाइयों ने अपनी बहन को भी भोजन करने के लिए कहा।
इस पर वीरवती ने कहा कि जब तक चांद नहीं निकलेगा तब तक वह भोजन नहीं करेगी। भाइयों से अपनी भूखी-प्यासी बहन की हालत देखी नहीं गयी। तब सबसे छोटे भाई ने एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित किया और अपनी बहन से बोला – बहन चांद आ गया है अब उपवास खोल लो।
बहन नकली चांद को अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठ गई। जैसे ही उसने एक निवाला खाया वैसे ही उसके पति की मृत्यु हो गई। ये खबर मिलते ही वीरवती दुख से बेहाल हो गई और अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और पति के शव पर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही।
अगले साल जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो उसने फिर से पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसके पति के प्राण वापस आ गए।
करवा चोथ की दूसरी कहानी (Karva Choth katha in Hindi)
एक समय की बात है, करवा नाम की एक धर्मपरायण स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे एक गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। जब वह नहा रहा था तो एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया, इसलिए वह आदमी अपनी पत्नी को इसे खत्म करने के लिए बुलाने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा दौड़कर आई और मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर वह यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे प्रभु! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ का पैर पकड़ने के अपराध में तुम उसे अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज ने कहा- मगरमच्छ की उम्र अभी पूरी नहीं हुई है, इसलिए मैं इसे नहीं मार सकता। इस पर करवा ने कहा यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। यह सुनकर यमराज डर गए और मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया। जिसके बाद सभी महिलाएं माता के नाम पर करवा चौथ का व्रत रखने लगीं।