देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। बैकुंठ भगवान विष्णु का आवास है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव, कैलाश पर महादेव एवं बैकुंठ में भगवान विष्णु बसते हैं। श्री कृष्ण के अवतरण के बाद बैकुंठ को गोलोक भी कहा जाता है। आपको पुराणों की धारणा अनुसार हम आपको बताना चाहेंगे कि बैकुंठ धाम कहां है और वह कैसा है।
चूंकि श्री कृष्ण और विष्णु एक ही हैं इसलिए श्रीकृष्ण के निवास स्थान को भी बैकुंठ कहा जाता है। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि जो केवल और केवल मेरा ध्यान करता है वो मोक्ष प्राप्त कर मेरे लोक बैकुंठ को जाता है जहाँ के ऐश्वर्य की देवता भी केवल कल्पना मात्र कर सकते हैं। बैकुंठ चारों ओर से दिव्य विमानों से घिरा रहता है, जिस पर दिव्य ऋषि-मुनि, देवता एवं विष्णु जी के परम भक्त विराजित रहते हैं। उनके तेज से बैकुंठ ऐसे जग माता है जैसे मेघों में तड़ित चमकती है। हालांकि कई लोग बैकुंठ धाम को ही परमधाम समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। सभी लोकों से भी जो सबसे ऊपर है वही परमधाम है जहाँ जाना ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के अतिरिक्त किसी और के वश में नहीं है। यहीं सदाशिव यानि कि परमात्मा का निवास है। पृथ्वी, समुद्र एवं स्वर्ग के ऊपर, इन तीन जगहों को बैकुंठ का स्थान बताया गया है।
प्रथम बैकुंठधाम: पृथ्वी पर बद्रीनाथ, जगन्नाथ और द्वारकापुरी को भी बैकुंठ धाम कहा जाता है।
पहला बैकुंठ धाम :
चारों धामों में सर्वश्रेष्ठ हिन्दुओं का सबसे पावन तीर्थ बद्रीनाथ, नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा, अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नीलकंठ पर्वत श्रृंखला की पृष्ठभूमि पर स्थित है। भारत के उत्तर में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु का दरबार माना जाता है। बद्रीनाथ धाम में सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ आराध्य देव श्री बद्रीनारायण भगवान के 5 स्वरूपों की पूजा-अर्चना होती है। विष्णु के इन 5 रूपों को 'पंच बद्री' के नाम से जाना जाता है। श्री विशाल बद्री, श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्ध बद्री और श्री आदि बद्री।
बद्रीनाथ के अलावा द्वारका और जगन्नाथपुरी को भी बैकुंठ धाम कहा जाता है। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। त्रेता युग में रामेश्वरम की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। द्वापर युग में द्वारका धाम की स्थापना योगीश्वर श्रीकृष्ण ने की थी और कलयुग में जगन्नाथ धाम को ही बैकुंठ कहा जाता है। पुराणों में धरती के बैकुंठ के नाम से अंकित जगन्नाथ पुरी का मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव रूप में अवतार लिया था।
दूसरा बैकुंठ धाम :
दूसरे बैकुंठ की स्थिति धरती के बाहर बताई गई है। इसे ब्रह्मांड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर बताया गया है। यह धाम दिखाई देने वाली प्रकृति से 3 गुना बड़ा है। हमारी प्रकृति से मुक्त होने वाली हर जीवात्मा इसी परमधाम में शंख, चक्र, गदा और पद्म के साथ प्रविष्ट होती है। वहां से वह जीवात्मा फिर कभी भी वापस नहीं लौटती। यहां श्रीविष्णु अपनी 4 पटरानियों श्रीदेवी, भूदेवी, नीला और महालक्ष्मी के साथ निवास करते हैं। इसी बैकुंठ के बारे में कहा जाता है कि मरने के बाद विष्णु भक्त पुण्यात्मा यहां पहुंच जाती है। पुराणों के अनुसार इस बैकुंठ की स्थिति हमारे ब्रह्मांड के परे है। जीवात्मा जब उस बैकुंठ की यात्रा करती है, तो उसको विदा देने के लिए मार्ग में समय के देवता, प्रहर के देवता, दिवस के देवता, रात्रि के देवता, दिन के देवता, ग्रहों के देवता, नक्षत्रों के देवता, माह के देवता, मौसम के देवता, पक्ष के देवता, उत्तरायण के देवता, दक्षिणायन के देवता सभी तलों (अतल, सुतर, पाताल आदि) के देवता, सभी 33 कोटि के देवता पहले उसे पुन: किसी और योनि में धकेलने का प्रयास करते हैं या बैकुंठ जाने देने से रोकते हैं। लेकिन जो जीवात्मा प्रभु श्रीविष्णु की शरणागति होता है उसको ये सभी एकपाद विभूति के अंतिम सीमा तक जाते हैं और त्रिपाद विभूति के बाहर प्रवाहित होने वाली विरजा नदी के तट पर छोड़ देते हैं।
तीसरा बैकुंठ धाम :
भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका के बाद एक ओर नगर बसाया था जिसे बैकुंठ कहा जाता था। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अरावली की पहाड़ी श्रृंखला पर कहीं बैकुंठ धाम बसाया गया था, जहां इंसान नहीं, सिर्फ साधक ही रहते थे। भारत की भौगोलिक संरचना में भू-शास्त्र के अनुसार अरावली भारत का सबसे प्राचीनतम पर्वतमाला है। माना जाता है कि यहीं पर श्री कृष्ण ने बैकुंठ नगरी बसाई थी। राजस्थान में यह पहाड़ नैऋत्य दिशा से चलता हुआ ईशान दिशा में करीब दिल्ली तक पहुंचता है। अरावली या 'अर्वली' उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुजरती 560 किलोमीटर लंबी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियां दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं। अगर गुजरात के किनारे अर्बुदा माउंट आबू का पहाड़ उसका एक सिरा है तो दिल्ली के पास की छोटी-छोटी पहाड़ियां इसका दूसरा सिरा बनाती हैं।
गीता के नवें अध्याय के २१ वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं - "'हे अर्जुन! अव्यक्त 'अक्षर' इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है।"