मंत्री हमेशा राजा के हित की सोचता रहता था और उचित अवसर की तलाश में था कि राजा को अपने इस दोष का आभास हो और उसके द्वारा होने वाली हानि को समझ कर उसमें से निकल जायँ। एक दिन की बात है, राजा मंत्री के साथ उद्यान में घूमते हुए एक शिला पर बैठ गया। शिमला के ऊपर एक छायादार पेड़ था। उस आम के पेड़ पर कौवे का एक घोंसला था, उसमें काली कोयल अपना अण्डा रख गयी। कोयल अपना घोंसला नहीं बनाती, वरन् कौवे के घोंसले में ही अंडे रख देती है। कौवे उस अण्डाको अपना समझ कर बताती रहती है। आगे चलकर उसमें से कोयल का बच्चा निकला। कौवे उसे अपना पुत्र समझकर चोंच से चुग्गा ला, उसे पालती थी। कोयल के बच्चे ने असमय जबकि उसके पर भी नहीं निकले थे, कोयल की आवाज की। कौवे ने सोचा-'यह अभी विचित्र आवाज करता है, बड़ा होने पर क्या करेगा ?' कौवीने चोंचसे मार-मारकर उसकी हत्या कर दी और घोंसलेसे नीचे गिरा दिया। राजा जहाँ बैठा था, वह बच्चा वहीं उसके पैरोंके पास गिरा।
राजा ने मंत्री से पूछा–'मित्र! यह क्या है ?' मन्त्रीको राजा की भूल बताने का यह अवसर मिल गया। इसी | अवसर का फायदा उठाकर मंत्री ने कहा-'महाराज! अति वाचाल (बहुत बोलने वालों) की यही गति होती है।" पूछने पर मंत्री पूरी बात राजा को समझाकर बताया कि कैसे यह बच्चा समय आवाज करने से नीचे | गिरा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। यदि यह चुप रहता तो यथासमय घोंसले से उड़ जाता। इतना कहकर मंत्री ने राजा को मौका देखकर उसकी वाचालता दूर करने के लिये यह प्रत्यक्ष उदाहरण बनाकर नीति बतायी। 'चाहे मनुष्य हो, चाहे पशु-पक्षी; असमय अधिक बोलने से इसी तरह दुख भोगते हैं।' उसने वाणी के अन्य दोष और उसके दुष्परिणाम राजा को बताये।
'दुर्भाषा वाणी हलाहल विष के समान ऐसा नाश करती है, जैसा तेज किया हुआ शस्त्र भी नहीं कर सकता। | इसलिए बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिये कि वाणी का समय-असमय रक्षा करे। अपने समकक्ष व्यक्तियों से कभी अधिक बातचीत न करे। जो बुद्धिमान् समय पर विचारपूर्वक थोड़ा बोलता है, वह सबको अपने वश में कर लेता है।' बुद्धिमान् और प्रज्ञावान् मंत्री की बात सुनकर राजा अति वाचालता के दोष को दूर कर मितभाषी हो गया और सुख पूर्वक राज्य करने लगा, उसने प्रसन्न होकर मन्त्रीको मान और वैभव से कृतार्थ किया।